Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगद्वारसूत्रे द्विसमयस्थितिका अवक्तव्यकानि । अथवा-त्रिसमयस्थितिकश्च एकसमयस्थितिकम आनुपूर्वीच अनानुपूर्वी व । एवं तथैव द्रव्यानुपूर्वीगमेन पविशतिर्भङ्गा भणितव्याः, यावत् सैषा नैगमव्यवहारयो भङ्गोपदर्शनता ।।९० १२९॥ ___टीका-'से किं तं इत्यादि । व्याख्या द्रव्यानुपूर्वीवदभ्यूहनीया । ९० १२९॥ तीन समय की स्थितिवाले अनेक अपनी २ एक सी जातिवाले पदार्थ आनुपूर्वियां हैं। (एगसमयहिइया अणाणुपुव्वीओ) एक समय में स्थितिथाले अनेक अपनी २ एक सी जातिवाले पदार्थ अनानुपूर्थियां हैं। (दुसमयहिश्या अवत्तव्वयाई) दो समय की स्थितिवाले अनेक अपनी २ एक सी जातिवाले पदार्थ अन्नक्तव्यक हैं। इस प्रकार ये एकवचनान्त बहुवचनान्त पक्ष में ३-३ भंग हैं। इस प्रकार से असंयोग पक्ष में इन छ भंगों का अर्थ कथन है । संयोगपक्ष में एकवचन और बहुवचन संबन्धी प्रथम और द्वितीय भंग को संयुक्त करने पर त्रिसमय की स्थितिवाला पदार्थ एक आनुपूर्वी और एक समय की स्थितिवाला पदार्थ एक अनानुपूर्वी का वाच्यार्य जानना चाहिये। यही बात (अहवा तिसमदटिइए य एगसमयटिइए य आणुपुत्वी य अणाणुपुत्री य) इस पाठ द्वारा स्पष्ट की गई है। यह प्रथम चतुर्भगी का प्रथम भंग है (एवं तहाचेव दव्वाणुपुधीगमेणं छब्बीसं भंगा भाणियव्या जाव से तं गमववहाराणं भंगोवर्दसणया) इस प्रकार द्रव्यानुपूर्वी के पाठ के पातपातानी में सभी dिal ५६. मनानु । ३५ 2. (दुसमयदिइया अवत्तवयाई) में सभयनी स्थितिमा भने पातपातानी से સરખી જાતિવાળા પદાર્થો અવક્તવ્યકે રૂપ છે. આ પ્રકારે એકવચનાન્ત અસગ પક્ષમાં ત્રણ ભંગ અને બહુવચનાત અસગ પક્ષમાં પણ ત્રણ ભંગ બને છે. આ રીતે અસંગપક્ષે કુલ ૬ ભંગ બને છે. સંગ પક્ષે એકવચન અને બહુવચન સંબંધી પ્રથમ અને દ્વિતીય ભંગને સંયુક્ત કરવાથી ત્રણ સમયની સ્થિતિવાળો પદાર્થ એ આપવી રૂપ અને એક સમયની સ્થિતિવાળો પદાર્થ એક અનાનુપૂર્વી રૂપ સમજવું જોઈએ, એ જ વાત નીચેના સૂત્રપાઠ દ્વારા પ્રકટ કરવામાં આવી છે
(महवा तिसमयदिइए य एगसमयष्ट्रिइए य भाणुपुत्वीप भणाणुपुटवी य) આ પ્રકારે પહેલી ચતુર્ભાગીને પહેલે ભંગ ઉપર પ્રકટ કરવામાં આવ્યો છે. (एवं तहा चेव दवाणुपुव्वीगमेणं छठवीसं भंगा भाणियव्या नाव से तं णेगमववहाराणं भगोवदसणया) मा यानु५वीना Hi tul-या अनुसा.
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