Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगन्द्रिका टीका सूत्र ९३ भङ्गसमुत्कीर्तनतानिरूपणम् ४०५ पूर्वी च ४, अथवा-अस्ति आनुपूर्वी च अक्तव्यकं च ५, अथवा-अस्ति अनानुपूर्वी च अवक्तव्यकं च६, अथवा-अस्ति आनुपूर्वी च अनानुपूर्वीच अवक्तव्य च ७। एवं सप्त भङ्गाः । सैषा संग्रहस्य भङ्गसमुत्कीर्तनता ॥मू० ९३॥ आनुपुर्वी है. अनानुपूर्वी है (अहवा-अस्थिआणुपुत्वीय अवत्तम्वएय) अथवा ५ आनुपूर्वी हैं अवक्तव्यक है ( अहवा-अस्थि अणाणुपुत्वीय अवसन्धए य ) अथवा-६ अनामुपूर्वी है अवक्तव्यक है, ( अहवाअस्थि आणुपुष्वीय अणाणुपुब्बी अवत्तव्वए य) अथवा ७ आनुपूर्वी है अनानुपूर्वी है अवक्तव्यक है । ( एवं सत्स भंगा) इस प्रकार ये सात भंग हैं । ( से तं संगहस्स भंगसमुक्त्तिणया) इस प्रकार संग्रहनय मान्य भंगसमुत्कीर्तनता है।
भावार्थ-संग्रहनय मान्य अर्थपद प्ररूपणता से क्या प्रयोजन सधता है? यह यात सूत्रकार ने इस सूत्रद्वारा स्पष्ट की है। इसमें उन्हों ने भंग समुत्कीर्तनता का प्रयोजन कहा है, इस भंगसमुत्कीर्तनता में मूल में ३ पद हैं १ आनुपूर्वी, २ अनानुपूर्वी और तीसरा अवक्तव्यक। आमुपूर्वी का वाच्यार्थ क्या है ? यह सष पहिले स्पष्ट कर दिया गया है।
(अहवा-अस्थिवाणुपुत्वी य अवत्तब्वए य) अथ। (५) आनुपूवी छे. भ. ४०५४ छे. (अहवा-अत्थि अणाणुपुव्वी य अवत्तव्यए य) अथवा (६) भनानुनी छे, अवतव्य छे. (अहवा-अस्थि आणुपुश्वी य, अणाणुपुव्वी य, अवतव्वर य) अथवा (७) भानुपूवी , मनानुपूवी छ भने सsans 2. (एवं सत भंगी) मा प्ररे मडी सात मin (qिsEql) सन 2. (सेतसंग्रहस्स भंगसमुकित्तणया) ॥ ५२नु सहनयस मत मसभुती.. તનતાનું સ્વરૂપ છે.
ભાવાર્થ-સંગ્રહ સંમત અર્થ પદારૂપપણુતાનું પ્રયોજન આ સુત્રધારા સૂત્રકારે પ્રકટ કર્યું છે. તેમણે આ સૂત્રમાં એવું પ્રતિપાદન કર્યું છે કે અર્થપદ પ્રરૂપણુતા વડે ભંગસમુત્કીર્તનતા રૂપે પ્રયજન સિદ્ધ થાય છે. આ ભંગસમુત્કીનામાં મૂળ ત્રણ પદ . તે ત્રણ પદ આ પ્રમાણે છે(१) भानुभूती, (२) मनानुनी मने (3) अपत०५४ मानुषी मालिनी વાચ્યાર્થી પહેલાં સ્પષ્ટ કરવામાં આવે છે. આ ત્રણે પદોને સ્વતંત્ર રૂપે
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