Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगद्वारसूत्र अणुपुवी य अवत्तव्वए य७। एवं सत्त भंगा। सेतं संगहस्स भंगसमुक्त्तिणया ।सू०९३॥
छाया-पतया खलु संग्रहस्य अर्थपदप्ररूपणतया कि प्रयोजनम् ? एतया खलु संग्रहस्य अर्थपदमरूपणतया संग्रहस्य भङ्गसमुत्कीर्तनता क्रियते । अय का सा संग्रहस्य भङ्गसमुत्कीर्तनता? संग्रहस्य भङ्गसमुत्कीर्तनता-अस्ति आनुपूर्वी १, अस्तिःअनानुपूर्वी २ अस्ति अवक्तव्यकम् ३, अथवा-अस्ति आनुपूर्वी च अनानु
अब सूत्रकार ससमभंगसमुत्कीर्तनता का निरूपण करते हैं"एयाए ण संगहस्स" इत्यादि।
शब्दार्थ-(एयाएणं संगहस्स अपयपरूवणयाए कि पओयणं ?) हे भदन्त ! संग्रहनय मान्य इस अर्थपदप्ररूपणता से कौनसा प्रयोजन सिद्ध होता है?
उत्तर-(एयाए णं संगहस्स अट्ठपयपरूषणयाए संगहस्स भंगसमु. कित्तणया कज्जइ ) संग्रहनय मान्य इस अर्थपद प्ररूपणता से संग्रहनयमान्य भंगसमुत्कीर्तनता की जाती है। "से कि तं संगहस्स भंग समुक्त्तिणया ?) संग्रहनय मान्य वह भंगसमुत्कीर्तनता क्या है ? .
उत्तर- (संगहस्स भंगसमुकित्तणया) संग्रहनय मान्य वह भंगसमुत्कीर्तनता इस प्रकार से है-(भत्थि आणुपुव्वी' अस्थि अणाणुपुव्वी) १ एक आनुपूर्वी है ' दसरा अनानुरू: है (अस्थि अवत्तवए) तीसरा अवक्तव्यक है ( अहवा अस्थि आणुपुत्वीय अणाणुपुत्वीय ) चौथाः
હવે સૂત્રકાર સાતમા ભંગ, ભંગસમુકીર્તનતાનું નિરૂપણ કરે છે– " " एयाएण संगहस्स" ५.याह
शहाथ-( एयाएण संगहस्स अत्थपयपरूवणयाए कि पओषण) B1વન ! સંગ્રહનયમાન્ય આ અર્થપદપ્રરૂપણા વડે કર્યું પ્રયોજન સિદ્ધ થાય છે?
6त्तर-(एयाएण' संगहस्स अत्थपयपरूवणाए संगहस्स भंगसमुकित्तणया ass) સંગ્રહનય સંમત આ અર્થપદપ્રરૂપણુતા વડે સંગ્રહનયમાન્ય ભંગસ-. મુકીર્તનતાનું સ્વરૂપ જાણી શકાય છે.
"से किं तं संगहस्स भंगसमुक्कितणया" सपनय मान्य समुहीતનતાનું સ્વરૂપ કેવું છે? . उत्तर-(संगहस्स भंगसमुक्कित्तणया ?) सनयमभत ते समुत्सी. નતા આ પ્રકારની કહી છે__(अस्थि आणुपुत्री, अस्थि अणाणुपुब्बी ) (1) मे यानुभूती . (२) मे मनानुषी छे, (अस्थि अवत्तव्वए) (3) मे अवतव्य छे. (अहवाभत्थि पाणुपुखी य, अणाणुपुव्वी य) (४) मानुषी छ, मनानुषी छ,
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