Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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५२८.
अनुयोगद्वार सा पश्चानुपूर्वी-पश्चानुपूर्वी ऊलोकः, तिर्यग्लोकः, अधोलोकः । सैषा पश्चानुपूर्वी। अथ का सा अनानुपूतो ? अनानुपूर्वी-एतस्यामेव एकादिकायामेकोत्तरिकायां विगच्छगताय श्रेण्यामन्योन्याभ्यासो द्विरूपन्यूनः । सैषा अनानुपूर्वी ॥सू० १२०॥
टीका-'से कि तं' इत्यादि । व्याख्याकृतपाया। ऊर्ध्वलोकादि लोकत्रयविषये किंचिदुच्यते-औपनिधिको द्रव्यानुपूर्वीपस्तावे द्रव्यानुपूर्घधिकाराद् धर्मा ... उत्तर-(पच्छाणुपुव्वी) पश्चानुपूर्वी इसप्रकार से है-उडलोए तिरियलोए अहोलोए) उर्वलोक, तिर्यग्लोक, अधोलोक, (से तं पच्छा. णुपुधी) यह पश्चानुपूर्ण है । (से कितं अणाणुपुत्री) अनानुपूर्वी क्या है।
(अणाणुपुब्बी) अनानुपूर्वी इस प्रकार से हैं। (एयाएचेव एगइयाए एगु सरियाए तिगच्छगयाए सेढीए अण्णमण्णभासो दुरूवणो-सेतं अणाणुपुब्बी) जिस में पूर्वानुपूर्वी और पश्चानुपूर्वी ये दोनों नहीं हैं उसका नाम अनानुपूर्वी है इसमें विवक्षित अधोलोक आदि क्रमद्वय को उल्लंघनकरके परस्पर सं भवित भंगों से उन पदों की विरचना की जाती है । इस अनानु. पूर्वी में जो श्रेणी स्थापित की जाती है, उसमें सब से पहिले १ एक संख्या स्थापित की जाती है-धाद में एक २ की उत्तरोत्तर वृद्धि तीन संख्या: तक होती चली जाती है। फिर इनमें परस्पर में गुणा किया जाता है। इस प्रकार अन्योन्याभ्यस्त राशि बन जाती है। इसमें से आदि अंत के,
प्रश्न-(से किं तं पच्छाणुपुव्वी) पश्चानुपूती ने हे छ ?
उत्तर-(पच्छाणुपुव्वी) पश्चानुपूवी L Rनी डाय छ-(उड्डलोए, तिरि.. यलोए, अहोलोए) Sqतियो भने अधीन, मा प्रमाणे असा उभे आयु (से तं पच्छाणुपुत्री?) तेनुं नाम पश्चानु छे.
प्रश्न-(से किं तं अणाणुपुव्वी) मनानुनी भेटसे शु
उत्तर-(अणाणुपुव्वी) मनानुभूती' मा २नी य ई-(एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए तिगच्छगयाए सेढीए अण्णमण्णभासो दुरूवूणो-से तं अणाणुपुब्बी) मा पूर्वानुभूती भने पश्चानुपूवी से मन्नेनी मा डाय छे, એવા કમપૂર્વક કથન કરવું તેનું નામ અનાનુપૂવી છે. તેમાં ઉપર્યુક્ત બને કમનું ઉલ્લંઘન કરીને પરસ્પરની સાથે સંભવિત ભંગે (ભાંગાઓ) વડે તે પની વિરચના કરવામાં આવે છે. આ અનાનુપૂવમાં જે છે સ્થાપિત કરવામાં આવે છે, ત્યાર બાદ ત્રણ સંખ્યા સુધી ઉત્તરોત્તર એક એક સંખ્યાની વૃદ્ધિ થતી રહે છે. ત્યાર બાદ તેમને પરસ્પરમાં ગુણાકાર કરાય છે. આ પ્રકારે અન્ય અભ્યત રાશિ બની જાય છે તેમાંથી આદિ અને
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