Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भनुयोगद्वार कि सन्ति ? न वा सन्ति ? इति प्रश्नः । उत्तरमाह-नियमात् सन्ति-भानुपूर्वी. द्रव्याणां सद्भावः संग्रहनयमतेऽस्त्येवेत्यर्थः । ___ ननु संग्रहविचारे प्रक्रान्ते 'आनुपूर्वीद्रव्याणि' इति बहुत्वेन निर्देशोऽनुपपमः, संग्रहनयमते आनुपूर्वीसामान्यस्यैवाऽभ्युपगमादितिचेत्, उच्यते-संग्रहनयमते मुख्यतया सामान्यमेवाभ्युपगम्यते, तथापि गौणरीत्या व्यवहारनयमते द्रव्यबहुस्वमपेक्ष्य बहुत्वेन निर्देशः कत इति नास्ति कश्चिद् दोषः । एवं संग्रहनयमते द्योरनानुपयवक्तव्यकयोर्विषयेऽपि बोध्यम् । अनानुपूर्व्यवक्तव्यकद्रव्याणां समायो नियमादस्तीत्यर्थः। अथ द्रव्यप्रमाणनिरूपयितुमाह-'संगहस्स आणुपुब्बीदवाई किं संखिज्जाई' इत्यादि-संग्रहनयसम्मतानि आनुपूर्वीद्रव्याणि किं संख्येयानि सन्ति ? किमसंख्येयानि सन्ति ? किंवा-अनन्तानि सन्ति ? इति प्रश्नः। उत्तरमाहस्थि" संग्रहनय संमत आनुपूर्वी द्रव्य है या नहीं हैं, इस प्रकार की शंका का समाधान यह है कि ये (नियमा अस्थि) नियम से हैं। इसी प्रकार से अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक द्रव्यों के विषय में भी यही समझना चाहिये कि ये दोनों द्रव्य नियम से हैं । द्रव्यप्रमाण में आनुपूर्वी आदि पदों द्वारा जिन द्रव्यों को कहा गया है उनकी संख्या का निर्धारण होता है-जैसे (संगहस्त आणुपुब्धीदवाई कि संखिज्जाहं असंखिजाई अणंताई ? ) संग्रहनय संमत आनुपूर्वीद्रव्य क्या संख्यात हैं या असंख्यात या अनंत हैं ?
उत्तर (नो संखिज्जोइं नो असंखिज्जाइं नो अणंताई) न संख्यात हैं न असंख्यात हैं, और न अनंत हैं किन्तु (नियमा एगो रासी) नियम से एक राशिरूप हैं मा प्रनता मा प्रमाणे उत्तर भापी शय. (णियमा अस्थि) “मानुपूकी દ અવશ્ય છે જ એ જ પ્રમાણે અનાનુપૂવી અને અવકતવ્યક દ્રવ્યોના વિષયમાં પણ એવું સમજવું જોઈએ કે એ બને દ્રવ્ય પણ અવશ્ય વિદ્યમાન છે.
દ્રવ્ય પ્રમાણમાં એ વાતને વિચાર કરવામાં આવે છે કે આનુપૂર્વી આદિ પદે દ્વારા જે દ્રવ્યનું કથન કરવામાં આવે છે તે દ્રવ્યોની સંખ્યા 2ी छे. २८ (संगहस्स आणुपुधीदवाई किं सखिज्जाइ' असंखिज्जाई अताई १) ॐ भवन् ! नयभत भानुपूवी द्रव्यो शुन्यात, કે અસંખ્યાત છે કે અનંત છે? .. उत्तर-(नो संखिजाई, नो असंखिजाइनो अणताई) 8नयमत આપવી સંખ્યાત પણ નથી, અસંખ્યાત પણ નથી અને અનત पनी , ५२न्तु (नियमा एगो रासी) नियमथी राशि३५ छे.
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