Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र ११९ अनौपनिधिको क्षेत्रानुपूर्वी निरूपणम् ५५५ मतार, मंगोपदर्शनता३, समवतार:४, अनुगमः ५ । अथ का सा संग्रहस्य अर्थपद. प्ररूपणता ? संग्रहस्य अर्थपदमरूपणता-प्रिप्रदेशावगाह आनुपूर्वी, चतुष्पदेशावगाडभानुपूर्वी, यावद् दशपदेशावगाढ आनुपूर्वी, संख्येयप्रदेशावगाढ आनुपूर्ती,
उत्तर-(संगहस्त अणोवणिहिया खेसाणुपुष्धी पंचविही पण्णत्ता) संग्रहनयमान्य अनोपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी पांच प्रकार की कही गई है। (तं जहा) उसके वे प्रकार ये हैं-(अस्थपयपरूवणया) १ अर्थपदप्ररूपणता ( भंगसमुकिसणया)२ भगसमुत्कीर्तनता (भंगोवदंसणया)३ भंगोपदर्शनता (समोयारे )४ समवतार (अणुगमे) और अनुगम ।
प्रश्न-(से किं तं संगहस्स अस्थपयपरूवणया) संग्रहनय मान्य अर्थपदप्ररूपणता क्या है?
उत्तर (संगहस्स अस्थपयपरवणया) संग्रहनयमान्य अर्थपदप्ररूपणता इस प्रकार से है-(तिप्पएसोगाढे आणुपुष्वी) तीन प्रदेश में अवगाहस्थित-व्यणुक आदि द्रव्य आनुपूर्वी है (चउप्पएसोगाढे भाणुपुब्बी) पार प्रदेशों में अवगाढ चतुरणुक आदि आनुपूर्वी है
(जाव दसपएसोगावे आणुपुब्धी) यावत् दशप्रदेशाषगाट ग्य आनुपूर्वी है (संखिज्जपएसोगाढे आणुपुव्वी) संख्यात प्रदेशावगार द्रव्य आनुपूर्वी है। (असंखिज्जपएसोगाढे आणुपुव्वी) असंण्यात प्रदे.
Gत्तर-(संगहस्स अणोवणिहिया खेवाणुपुच्ची पंचविहा पण्णत्ता) 'नय. सभत मनोपनिधिही नुा पाय पानी से छे. (संजहा) ते । नाय प्रभा -(अत्थपयपरूवणया) (१) मा ५४५३५gता, (भंगममुकितणया) (२) समुजीतनता, (भगोवदसणया) () नता, (अमोयारे) (४) सभवतार भने (अणुगमे) (५) मनुराम.
प्रश-(संगहस्स भत्थपयपरवणया ?) 'नयभा-५ ५६५३वाई વરૂપ કેવું છે?
उत्तर-(संगहस्स अत्यपयपरूपणया) सनयमान्य ५५४५३५ga mu रनी है-(तिपएसोगाढे आणुपुव्वी) १५ प्रशामा अर (२९) भारावा द्र०५ भानुका ३५ , (परप्पएसोगाठे पाणुपुव्वी) या प्रदेशमा MAR यार भाद्र०५ ५ भानुभूती छे, (जाब दसपएगोगाटे माणपुम्वी) ५-तना मा अq॥ द्र०५ मानुषी छ, (संखिज्जपएसोगाढे आणुपुव्वी) सभ्यात प्रदेशमा १ ०५ भानुभूती (असं. विजपएसोगावे पाणुपुम्वी) अने सात प्रदेशमा भ ६०५ ५५
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