Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जोगवनिका टीका सूत्र ९९ पुद्गलास्तिकायमधिकृत्य द्रव्यत्रयनिरूपणम् ॥ इतस्तत्पर्यन्त स्थापना कर्तव्या। अनानुपूर्ध्या तु पूर्वानुपूर्वीपश्चानुपूर्वीस्थान व्युत्क्रमोभयं परित्यज्य यथारुचि स्थापनाकर्तव्येति। प्रस्तुतसूत्रमुपसंहरन्नाइ' से तं ' इत्यादि । सैषाऽनानुपूर्वीति ॥सू० ९८॥
इत्यं धर्मास्तिकायादीनि षडपि द्रव्याणि पूर्वानुपूादित्वेनोदाहतानि । सम्वत्येकं पुद्गलास्तिकायमधिकृत्याह
- मूलम् अहवा ओवणिहिया दवाणुपुवी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-पुन्वाणुपुत्वी पच्छाणुपुव्वी अणाणुपुब्बी। से किं तं पुव्वाणुपुत्री? पुव्वाणुपुवी परमाणुपोगले दुप्पएसिप तिप्पपसिए जाव दसपएसिए संस्किज्जपएसिए असंखिज्जपएसिए अणंतपएसिए। से तं पुव्वाणुपुब्बी। से किं तं पच्छाणुपुवी? पच्छाणुपुटवी अणंतपएसिपअसंखिज्जपएसिए संखिज्जपएसिए जाव दसपएसिए जाव तिप्पएसिए दुप्पएसिए परमाणुपोग्गले। से तंपच्छाणुपुवी। से किं तं अणाणुपुवी ? अणाणुपुठनी एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए अणंतगच्छगयाए सेढीए अण्णमण्णब्भासो दुरुखूणो। से तं अणाणुपुवी । से तं ओवणिहिया दव्वाणुपुवी। से तं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ता पाद अधर्मास्तिकाय और फिर धर्मास्तिकाय इस व्युत्क्रम से ६ द्रव्यों का स्थापन किया जाता है। परन्तु अनानुपूर्वी में इन दोनों प्रकार के पूर्वानुपूर्वी पश्चानुपूर्वी रूप क्रम व्युत्क्रम का परित्यागकर यथारूचि ६ द्रव्य स्थापित किये जाते हैं । (से तं अणाणुपुव्वी) इस प्रकार यह अनानुपूर्वी का स्वरूप हैं। ॥ सू० ९८॥ અને ત્યાર બાદ ધર્માસ્તિકાય, આ પ્રકારના ઉલ્ટા ક્રમથી ૬ દ્રવ્યોનું સ્થાપન કરાય છે પરંતુ અનાનુપૂવીમાં તે પૂર્વાનવીની જેમ છ દ્રવ્યના સીધા કમને અને પશ્ચાનુપૂવીની જેમ તેમના ઉલ્ટા ક્રમને અને યથારુચિ (भनन गमे ते शत) ७ व्या २८५ ४२पामा मावे छ (से त अणाणुपुवी) मा भानु मनावी २०३५ छे. ॥१८॥
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