Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तत्र खलु या सा अनौपनिधिकी सा द्विविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-नैगमव्यवहारयोः१, संप्रहस्य २ च ॥९० १००॥
टीका--' से कि तं' इत्यादि
व्याख्या पूर्ववद् बोध्या ॥मू० १००॥ क्षेत्रानुपूर्वी, दूसरी अनोपनिधि की क्षेत्रानुपूर्वी। (तत्थ णं जा सा ओवणिहियासी ठप्पा) इनमें जो औपनिधि की क्षेत्रानुपूर्वी है वह अल्प विषयवाली होने के कारण अर्थात् उसका विषय विशेष विवेचना करने के योग्य न होने से-इस समय व्याख्या नहीं की जाती है । तात्पर्य कहने का यह है कि प्रथम नंबर की होने के कारण सूत्रकार को सबसे पहिले औक विधि की क्षेत्रानुपूर्वी का विवेचन करना कर्तव्य है। परन्तु ऐसा न करके वे पहिले अनौपनिधि की क्षेत्रानुपूर्वी का जो विवेचन करेंगे इसका कारण यह है कि औपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी को विषय विशेष वक्तव्य के योग्य नहीं है । क्यों कि उसका विषय अल्प है। इसलिये (तस्थणं जा साअणोवणिहिया सादुविहा पण्णत्ता) इनदोनों आनुपूर्वियों में जो अनौपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्ण है उसका विस्तृत विवेचन करने के अभिप्राय से सूत्रकार कहते हैं कि वह दो प्रकार की कही गई है। (क्त जहा ) वे उसके प्रकार ये हैं-(णेगमववहाराणं १ संगहस्स २) एक भोपनिषिी क्षेत्रानुभूती', मने (२) मनोपनिधिही क्षेत्रानुभूती (तत्थण जा मा भोवणिहिया मा ठप्पा) तमाथी रे मोपनिषिी क्षेत्रावी छते १५ વિષયવાળી હોવાને કારણે એટલે કે તેને વિષય, વિશેષ વિવેચન કરવા યોગ્ય નહીં હેવાને કારણે, તેનું નિરૂપણ સૂત્રકાર આ સૂત્રમાં કરશે નહીં પણ પાછળના સૂત્રમાં કરશે જે કે ક્રમ અનુસાર તે તે પહેલી હેવાથી તેનું નિરૂપણ પહેલાં થવું જોઈએ પરંતુ સૂત્રકારે અહીં અનૌપનિધિકી ક્ષેત્રાનુપૂવનું નિરૂપણ પહેલાં કર્યું છે કારણ કે ઓપનિધિકી ક્ષેત્રાનુપૂર્વીને વિષય અલ્પ હોવાથી તેનું વિશેષ વક્તવ્ય કરવાનું નથી. પરંતુ અનોપનિધિકી ક્ષેત્રાનુવને વિષય વિસ્તૃત વિવેચન કરવા ગ્ય છે. તેથી સૂત્રકાર અહીં પહેલાં अनोपनिधि: द्रव्यानुपूर्वानु नि३५५५ ४९ छे 3-(तत्थ ण जा मा अणोबाणिहिया सा दुविहा पण्णत्ता) त भन्ने भानुपूवी सोमानी २ मनीपानाही क्षेत्रानुपूर्वा छे तेना मे ॥२ ४६॥ छ. (तंजहा) ते ॥२॥ नाय प्रमाणे(गैगमववहाराण, संगहस्स) (१) नामव्यवहार नयभत मनोपनिविही क्षेत्रा.
For Private and Personal Use Only