Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगद्वारसूत्रे
मूलम् - से किं तं अणुगमे ? अणुगमे नवविहे पण्णत्ते, तं जहा - संतपयपरूवणया जाव अप्पाबहुं चेव ।। सू० १०९ ।।
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छाया - अथ कोऽसौ अनुगमः ? अनुगमो नवविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-सत्पदप्ररूपणता यावत् अल्पबहुत्वं चैव ।। सू० १०९ ॥
टीका - अथ अनुगमं प्ररूपयितुं प्राह - ' से किं तं ' इत्यादि । अथ कोऽसौ अनुगमः ? इति प्रश्नः । अनुगमो नवविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा - सत्पद प्ररूपणता १,
(नो अणाणुपुब्वदव्वेहिं नो अवतन्त्रगदव्वेहिं समोयरंति ) अनानुपूर्वी द्रव्यों में एवं अवक्तव्यक द्रव्यों में समाविष्ट नहीं होते हैं। (एवं तिष्णि वि सहाणे समोयरंति सिभाणि यच्व-से तं समोपारे) इसी प्रकार से यह समझना चाहिये कि अवक्तव्यक और अनानुपूर्वी द्रव्य भी आनुपूर्वी द्रव्य की तरह अपनी ५ जातिरूप की अवक्तव्यक और अना नुपूर्वी द्रव्यरूप स्वस्थान में ही अन्तर्भूत होते हैं इस प्रकार से ये तीनों ही स्व स्व स्थान में ही समाविष्ट होते हैं,। परस्थान में नहीं यही समवतार का स्वरूप है इस सूत्र की व्याख्या पहिले ८० सूत्र की व्याख्या की तरह जाननी चाहिये ।। सू० १०८ ॥
अब सूत्रकार अनौपनिधि की क्षेत्रानुपूर्वी के पंचम भेदरूप अनुगम के स्वरूप का कथन करते हैं- "से किं तं अणुग मे ? " इत्यादि । शब्दार्थ - (से किं तं अणुगमे ?) हे भदन्त ! अनुगम का क्या स्वरूप है ? उत्तर- (अणुगमे नवविहे पण्णत्ते) अनुगम नौ प्रकार कहा है (तंजअणाणुपुब्बी दव्वेहिं नो अवत्तव्वगदव्वेहिं समोगरंति) पशु मनानुपूर्वी द्रव्योम भने भवतव्या द्रव्योम समाविष्ट थतां नथी. (एवं तिष्णि वि साणे समोयरंति त्ति भाणियव्व से त समोयारे) ये प्रमाणे व्यवस्तव्य અને અનાનુપૂર્વી દ્રવ્યે પણ પાતપોતાની જાતિના દ્રવ્સેમાં જ (અનુક્રમે અવક્તવ્યર્ક અને અનાનુપૂર્વી દ્રવ્યે રૂપ સ્વસ્થાનમાં જ) અતભૂત થાય છે. અન્ય સ્થાનમાં અંતર્ભૂત થતાં નથી આ પ્રકારનું સમવતારનુ” સ્વરૂપ છે. આ સૂત્રની વ્યાખ્યા ૮૦ માં સૂત્રની વ્યાખ્યા પ્રમાણે સમજવી. ાસૂ॰૧૦૮ા હવે સૂત્રકાર અનૌપનિધિકી ક્ષેત્રાનુપૂર્વીના પાંચમાં ભેદ રૂપ અનુગમના स्व३चतु ं नि३षणु ४रे छे– “ से किं तं अणुगमे ? " ४त्याहि -
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शब्दार्थ - (से किं तं अणुगमे ? ) हे भगवन् ! अनुगमनु स्व३५ ठेवु छे? उत्तर- ( अणुगमे नवविद्दे पण्णत्ते) अनुगमना नवारा छे,
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