Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भनुयागवारसूत्र दवाणुपुवी। से तं नो आगमओ दव्वाणुपुत्वी। से तं दव्वाणुपुवी ॥सू०९९॥
या-अथवा-औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी त्रिविधा प्राप्ता, तद्यथा-पूर्वान पूर्वी पश्चानुपूर्वी अनानुपूर्वी । अथ का सा पूर्वानुपूर्वी ? पूर्वानुपूर्वी-परमाणुपुदलो द्विपदेशिकः त्रिप्रदेशिको यारत् दशमदेशिकः संख्येयप्रदेशिकः असंख्येयपदेशिका अनन्तमदेशिकः । सैषा पूर्वानुपूर्वी । अथ का सा पश्चानुपूर्वी ? पश्चानु
अथ सूत्रकार एक पुद्गलास्तिकाय के ऊपर तीनों की घटना करते हैं"अहवा ओवणिहिया" इत्यादि।
शब्दार्थ-( अहवा) अथवा- (ओवणिहिया वाणुपुव्वी)ोपनिधि की द्रव्यानुपूर्वी (तिविहा पण्णत्ता) तीन प्रकार की कही गई हैं। (तं जहा) वे प्रकार ये हैं- (पुवाणुपुन्वी ) पूर्वानुपूर्वी (पच्छाणुपुच्ची ) पश्चानुपूर्वी (भणाणुपुव्वी) और अनानुपूर्वी। (से किं तं पुव्वाणुपुव्वी) हे भदन्त ! पूर्व प्रक्रान्त पूर्वानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? (पुव्वाणुपुव्वी)
उत्तर-पूर्वानुपूर्वी इस प्रकार से हैं-(परमाणुपुग्गळे दुप्पएसिए तिप्पएसिए जाव दसपएसिए संखिज्जपएसिए असंखिज्जपएसिए अणंत. पएसिए) परमाणुपुद्गल, द्विप्रदेशी, त्रिप्रदेशी यावत् दशप्रदेशी, संख्यातमदेशी, असंख्यात प्रदेशी, अनंतप्रदेशी स्कंध-इस क्रमसे यह पुद्गला.
હવે સૂત્રકાર એક પુદ્ગલાસ્તિકાય ઉપર આ ત્રણેની ઘટના (સ્થાપના) કરે છે"हवा भोवणिहिया" त्याहि
AvsI4-(अहवा) अथवा (भोवणिहिया दवाणुपुषी) गोपनिधि इयानुभवी (तिविहा पण्णत्ता) ११ १२नी 6 . (तंजहा) ते १५ ॥२॥ नीय प्रमाणे छे-(पुवाणुपुव्वी, पच्छाणुपुब्बी अणाणुपुव्वी) (1) प्रानुभूती (२) पक्षानुभूती (3) मनानुभूती
18-(से किं त' पुवाणुपुत्री ?) 3मपन् ! नानु २१३५ 3 छ।
उत्तर-(पुव्वाणुपुव्वी) पूर्वानुभूतीन २१३५ मा ५२नु ५५ ४ थे(परमाणुपुग्गले, दुप्पएसिए तिप्पएसिए जाव दसपएसिए, संखिजपएसिए, असंखि. ज्जपएसिए, अणंतपएसिए) ५२५ पुस, विप्राः४५, विपशि२४५, દસ પ્રદેશી પર્યન્તના સ્કંધ, સંખ્યાત પ્રદેશીસ્કંધ, અસંખ્યાત પ્રદેશ અધ અને અનંત પ્રદેશી કંધ આ ક્રેમપૂર્વકની પુદ્ગલાસિતકાય સંબંધી જે આનYषी), (से त' पुव्वाणुपुत्री) तक पानुभूती ४७ हे.
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