Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मनुयोगद्वारसूत्रे शिकाधनन्तप्रदेशिकपर्यन्तानां स्कन्धानाम् आनुपूर्वीत्वसामान्याऽभेदात् सर्वाऽप्यानुपूर्वी एकैव । एवमनानुपूर्वीत्वसामान्याव्यतिरेकात् सर्वेऽपि परमाणुपुद्गला एकैवानानुपूर्वी, अवक्तव्यकत्वरूपसामान्याव्यतिरेकात् सर्वे द्विपदेशिकाः स्कन्धा अपि एकमेवावक्तव्यकम् , अतोऽत्र-'तिप्पएसिए आणुपुथ्वी' इत्यादि एकत्वेनैव निर्दिष्टम् , न तु बहुत्वेनेति । प्रकृतमुपसंहरमाह-' से तं' इत्यादि । सैषा संग्रहनयसम्मताऽर्थपदमरूपणतेति१ ॥सू०९२॥ समस्त त्रिप्रदेशिकादि स्कंध से लेकर अनंत प्रदेशिक स्कंध पर्यन्त के रकंधों की जीतनी भी आनुपूर्वियां हैं वे सब आनुपूर्वीस्व रूप सामान्य से अभिन्न होने के कारण एकही अनानुपूर्वी रूप है। इसी प्रकार अनानु. पूर्वीस्व रूप सामान्य से अभिन्न होने के कारण समस्त परमाणु पुद्गल रूप अनानुपूर्वीयां एकही अनानुपूर्वी रूप हैं । इसी प्रकार से अवक्तब्यक स्वरूप सामान्य से अव्यतिरिक्त होने के कारण समस्त विप्रदेशिक स्कंध भी एकही अवक्तव्यकरूप हैं । इसलिये यहां सूत्र में "तिप्पएसिए आणुपुब्धी" इत्यादि रूप से एकत्व का निर्देश सूत्रकारने किया है। बहुत्व का नहीं। (सेतं संगहस्स भट्ठपयपरूवणया) इस प्रकार यह संग्रहनय मान्य अर्थपद प्ररूपणता का स्वरूप है।
भावार्थ-संग्रहनय दो प्रकार का है- १ अविशुद्ध संग्रहनय और दसरा विशुद्ध संग्रहनय । अविशुद्ध संग्रहनय की मान्यतानुसार जिसने भी त्रिप्रदेशिक वाले स्कंध हैं वे एक आनुपूर्वी हैं तथा जितने भी સમસ્ત ત્રિપ્રદેશિક આ િધથી લઈને અનંત પ્રદેશિક પર્યન્તના ઋપિની જેટલી આનુપૂવી છે, તે બધી આનુપૂર્વીએ પણ આનુપૂવવ રૂપ સામા ન્યની અપેક્ષાએ અભિન્ન લેવાથી એક જ આનુપૂર્વી રૂપ છે. એ જ પ્રમાણે અનાનપૂવવ રૂપ સામાન્યની અપેક્ષાએ અભિન્ન હોવાને કારણે સમસ્ત પરમાણુ પુદ્ગલારૂપ અનાનુપૂત્રીઓ પણ એક જ અનાનુપૂર્વી રૂપ છે. એજ પ્રમાણે અવકતવ્યક રૂપ સામાન્યની અપેક્ષાએ અભિન્ન હોવાને કારણે સમત રિપ્રદેશી કપે પs એક જ અવક્તવ્યક રૂપ છે. તેથી જ સૂત્રકાર આ सूत्रमा “ तिप्पएमिए आणुपुग्वी" निशि मानुषी मालि३ सपना (' या , ५५ महत्पनी निश ये नथी. (से तसंगहस्स भत्वपयपहवणया) मा ५२ अनयस मत म५६५३५ तार्नु २१३५२.
साय-अनय में मारने। -(1) अविशुद्ध सनय भने (२) વિશુદ્ધ સંગ્રહનય અવિશુદ્ધ સંગ્રહાયની માન્યતા અનુસાર સમસ્ત ત્રિપ્રદેશ
છે એક આવી રૂપ છે, એ જ પ્રમાણે જેટલા ચાર પ્રદેશથી લઈને
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