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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०४ अनुयोगद्वारसूत्र अणुपुवी य अवत्तव्वए य७। एवं सत्त भंगा। सेतं संगहस्स भंगसमुक्त्तिणया ।सू०९३॥ छाया-पतया खलु संग्रहस्य अर्थपदप्ररूपणतया कि प्रयोजनम् ? एतया खलु संग्रहस्य अर्थपदमरूपणतया संग्रहस्य भङ्गसमुत्कीर्तनता क्रियते । अय का सा संग्रहस्य भङ्गसमुत्कीर्तनता? संग्रहस्य भङ्गसमुत्कीर्तनता-अस्ति आनुपूर्वी १, अस्तिःअनानुपूर्वी २ अस्ति अवक्तव्यकम् ३, अथवा-अस्ति आनुपूर्वी च अनानु अब सूत्रकार ससमभंगसमुत्कीर्तनता का निरूपण करते हैं"एयाए ण संगहस्स" इत्यादि। शब्दार्थ-(एयाएणं संगहस्स अपयपरूवणयाए कि पओयणं ?) हे भदन्त ! संग्रहनय मान्य इस अर्थपदप्ररूपणता से कौनसा प्रयोजन सिद्ध होता है? उत्तर-(एयाए णं संगहस्स अट्ठपयपरूषणयाए संगहस्स भंगसमु. कित्तणया कज्जइ ) संग्रहनय मान्य इस अर्थपद प्ररूपणता से संग्रहनयमान्य भंगसमुत्कीर्तनता की जाती है। "से कि तं संगहस्स भंग समुक्त्तिणया ?) संग्रहनय मान्य वह भंगसमुत्कीर्तनता क्या है ? . उत्तर- (संगहस्स भंगसमुकित्तणया) संग्रहनय मान्य वह भंगसमुत्कीर्तनता इस प्रकार से है-(भत्थि आणुपुव्वी' अस्थि अणाणुपुव्वी) १ एक आनुपूर्वी है ' दसरा अनानुरू: है (अस्थि अवत्तवए) तीसरा अवक्तव्यक है ( अहवा अस्थि आणुपुत्वीय अणाणुपुत्वीय ) चौथाः હવે સૂત્રકાર સાતમા ભંગ, ભંગસમુકીર્તનતાનું નિરૂપણ કરે છે– " " एयाएण संगहस्स" ५.याह शहाथ-( एयाएण संगहस्स अत्थपयपरूवणयाए कि पओषण) B1વન ! સંગ્રહનયમાન્ય આ અર્થપદપ્રરૂપણા વડે કર્યું પ્રયોજન સિદ્ધ થાય છે? 6त्तर-(एयाएण' संगहस्स अत्थपयपरूवणाए संगहस्स भंगसमुकित्तणया ass) સંગ્રહનય સંમત આ અર્થપદપ્રરૂપણુતા વડે સંગ્રહનયમાન્ય ભંગસ-. મુકીર્તનતાનું સ્વરૂપ જાણી શકાય છે. "से किं तं संगहस्स भंगसमुक्कितणया" सपनय मान्य समुहीતનતાનું સ્વરૂપ કેવું છે? . उत्तर-(संगहस्स भंगसमुक्कित्तणया ?) सनयमभत ते समुत्सी. નતા આ પ્રકારની કહી છે__(अस्थि आणुपुत्री, अस्थि अणाणुपुब्बी ) (1) मे यानुभूती . (२) मे मनानुषी छे, (अस्थि अवत्तव्वए) (3) मे अवतव्य छे. (अहवाभत्थि पाणुपुखी य, अणाणुपुव्वी य) (४) मानुषी छ, मनानुषी छ, For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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