Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुयोगचन्द्रिका ठीका सूत्र ९२ अर्थपदप्ररूपणानिरूपणम्
अथ संग्रहनयेनार्थ पदमरूपणतामाह
मूलम् - से किं तं संगहस्स अट्ठपयपरूवणया ? संगहरूस अटूपथपरूवणया तिप्पसिए आणुपुद्दी चउप्परसिए आणुपुत्री जाव दसपसिए आणुपुवी संखिजपएसिए आणुपुत्री असं खिज्जपएसिए आणुपुत्री अनंत एसिए आणुपुब्वी परमाणु पोम्गले अणाणुपुत्री, दुप्पएसिए अवत्तव्वए । से तं संग्रहस्त अट्ठपयपरूवणया ॥ सू० ९२ ॥
छाया - अथ का सा संग्रहस्य अर्थपदमरूपणता ? संग्रहस्य अर्थपदप्ररूपणता - त्रिप देशिक आनुपूर्वी चतुष्यदेशिक भानुपूर्वी याबद् दशप्रदेशिक आनुपूर्वी संख्येयमदेशिमुश्कीनता र भंगोपदर्श नता ३ समवतार४ और अनुगमः । इस सूत्र व्याख्या ७४ वे सूत्रकीव्याख्या के अनुसार जाननी चाहिये ॥ सु०९१ ॥ संग्रहनय के मतानुसार अर्थपदप्ररूपणता का क्या स्वरूप है ? इस बात को सूत्रकार प्रकट करते हैं। “से किं तं संगहस्स" इत्यादि
शब्दार्थ - हे भदन्त ! (से किं तं संगहस्स अट्ठपयपरूवणया) पूर्व प्रका उस संग्रहनय मान्य अर्थपदप्ररूपणता का क्या स्वरूप है ?
उत्तर- (संगहस्स अट्ठपयपरूवणया) संग्रहनय मान्य अर्थ पद प्रवणता का स्वरूप इस प्रकार से हैं - ( तिप्पएसिए आणुपुत्री चउपएसिए आणुपुत्री, जाब दसपएसिए आणुपुब्बी संखिज्जपए लिए
(3) भगोपदर्शनता, (४) सभवतार અને (૫) અનુગમ આ સૂત્રની વ્યાખ્યા ૭૪ માં સુત્રની વ્યાખ્યા પ્રમાણે સમજવી. ।।૦૯૧)
સંગ્રહનયના મતાનુસાર અથ પદ પ્રરૂપણુતાનું વરૂપ કેવુ હાય છે તે सूत्रठार अट ४२ छे " से कि त संगहस्स" इत्याहि
शार्थ - प्रश्न - (सेकित संगहरच अत्यपयपरूवणया १) हे भगवन् ! પૂર્વ પ્રસ્તુત સંગ્રહનચસંમત અથ પદ્મપ્રરૂપણતાનું સ્વરૂપ કેવું કહ્યુ' છે ? उत्तर - ( संगहस्स अत्यपयपरूवणया) सश्रनयस भत अर्थ यह स्व३५ मा अाउनु छे
भूतान
( तिप्परखिए आणुपुब्बी, चउप्परसिप आणुपुबी, जब इस परखिए माणुपुम्दी, संखिज्जपपलिए बाणुपुल्वी, अब्जिफ्पलिए आणुपुथ्वी, अपु
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