Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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योग
per नैगमव्यवहारनयमतेन अनौपनिधिको द्रव्यानुपूर्वी व्याख्याय संघजयमतेन सम्पति तामेव व्याख्यातुमाह
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मूलम् - से किं तं संगहस्स अणोवणिहिया दवाणुपुवी ? संगहस्स अणोवणिहिया दव्वाणुपुत्री पंचविहा पण्णत्ता, तं जहांअट्ठपयपरूवणयार, भंगसमुक्कित्तणयार भंगोवदंसणया ३ समोमारे४ अणु मे५॥ सू० ९९ ॥
छाया - अथ का सा संग्रहस्य अनौपनिषिकी द्रव्यानुपूर्वी ? संग्रहस्य अनौनिधिक द्रव्यानुपूर्वी पञ्चविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा - अर्थपदमरूपणता १, भीचमता २, भङ्गोपदर्शनता ३, समवतारः४, अनुगमः ५ ॥ ०९१॥ टीका -' से किं तं ' इत्यादि
व्याख्या निगद सिद्धा । सू० ९९||
से यह अनुगम का स्वरूप है। इस प्रकार यहां तक नैगम व्यवहारनय संमत अनोपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी का कथन किया । सू० ९० ॥
अब सूत्रकार संग्रहनय के मतानुसार इस अनौपनिधि की द्रव्या- पूर्वी का कथन करते हैं - 'से किं तं' इत्यादि ।
शब्दार्थ- हे भदन्त ( से किं तं संगहरूस अणोवणिहिया दव्याशु (पुत्री) 'संग्रहनय संमत अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? 2. उत्तर - ( संगहस्स अणोवणिहिया दष्वाणुपुत्री पंचविहा पण्णला) संग्रह संमत अनौपनिधिकी धानुपूर्वी पांच प्रकार कही गई है। (तं अहा ) उसके वे प्रकार ये हैं- ( अट्ठश्यरूपवणया १ भंगसमुत्तिणया ५ गोवदंसणया३ समोयारे ४, अणुग मे ५, ) अर्थपद प्ररूपणता १, भंग પ્રકારે અહીં સુધીમાં સૂત્રકારે તૈગમવ્યવહારનયસ'મત અનૌપનિષિકી દ્રવ્યાનુપૂર્વી ના સ્વરૂપનુ નિરૂપણુ કર્યુ છે. પ્રસૂ॰oll
હવે સૂત્રકાર સંગ્રહનયના મતાનુસાર આ અનૌપનિષિકી દ્રવ્યાનુપૂર્વીના - उथन रे छे" से कि त " त्याहि
शब्दार्थ - प्रश्न - ( से किं तं संगहस्स अणोवणिहिया दत्राणुपुत्री १) ભગવન્ ! સગ્રહુનયસ'મત અનોપનિષિકી દ્રવ્યાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ?
Gत्तर - ( संगहरू अणोवणिहिया दब्बाणुपुत्री पंचविधा पण्णत्ता ) स श्रद्धनमस भत अनोपनिधिडी द्रव्यानुपूर्वी पांच प्रारनी उही छे. ( त जहा ) तेरी नीचे प्रमाये छे - ( अत्थापयपरूवणया १, भंगसमुत्तिणया २, भंगोषवंलया३. समोयारे४ अणुग मे ५ ) ( 1 ) अर्थ अ३पता, (२) ભગસમુત્કીત નતા
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