Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भनुयोगपन्द्रिका टीका.सू० ५८ स्कन्धपर्याय निरूपणम्
इदानीं स्कन्धस्य पीयान् विवक्षुराह___ मूलमू-तस्स णं इमे एगट्रिया णाणाघोसा णाणावंजणा एमट्रिया नामघेजा भवंति, तं जहा-गणकाए य निकाए, खघे वग्गे तहेव रासी य । पुंजे पिंडे निगरे, संघाए ओउलसमूह ॥१॥ से त खंघे ॥ सू० ५८ ॥
छ.या-तस्य खलु इमानि एपार्थिानि नाना पाणि नानाव्यञ्जनानि एकाथि कानि नामधेयानि भवन्ति, तद्यथा-गणःकायश्च निकायः स्कन्धे। वर्गस्तथैव राशिश्च । पुनःपिण्डो निकरः संघात आकुलः समूहः ॥१॥ स एष स्कन्धः ॥५८॥ जानेवाली प्रमार्जना आदि क्रियाएँ हैं वे नोआगम हैं। यहां नो शब्द सर्वथा आगमाभाव का निषेधक नहीं हैं किन्तु एकदेश आगम का निषेधक है ? स्कंध पदार्थ का ज्ञान आगम और क्रिया अनागम नोआगम है। यह नोआगम को लेकर भावस्कंध का स्वरूप है।सूत्र५७।
अब सूत्रमार स्कंध की पर्यायों का कथन करते हैंतरसणं इमे एगढिया इत्यादि ! ॥सूत्र ५८॥
शब्दार्थ--(तस्स) इस स्कंध के (इमे) ये (गाणाघोसा) उदान आदि नाना घोषवाले (गाणावंजणा) ककार आदि अनेक व्यंजनांवाले (एगहिया)-- एकाकि पर्यायवाची (नामधेज्जा भवंति) नाम हैं । (तं जहा) जो इस प्रकार से हैं-(गणकाए य निकाए खंधे, वग्गे तहेव गसी य पुंजे पिंडे निगरे संधाए आउलसमूहे ॥१॥ से त खंघे) गणकाय, निकाय, स्कंध, वर्ग, राशि, पुंज, ઓ છે તે આગમ છે. અહીં બને” શબ્દ સર્વથા આગમભાવને નિષેધક નથી, પરતુ એક દેશતઃ આગમને નિષેધક કે. સ્કન્ધ પદાર્થનું જ્ઞાન આગમરૂપ છે અને કિયા અનાગમ–ને આગમરૂપ છે. આગમભાવસ્કન્ધનું આ પ્રકારનું સ્વરૂપ છે. સૂપા
હવે સૂત્રકાર સ્કલ્પના પર્યાયવાચી શબ્દનું કથન કરે છે– "तस्स णं इमे एगडिया" त्या
शा---(तस) ते २४.धना (इमे) ॥ (गाणी घोमा) Grd 6 विविध घोषवाणi (णाणावंजणा) ४४२ PALE अने: ०२tui (एगट्टिया) 3114 पर्यायवाची (नामधेज्जा भवंति नामी ४i छ. (तं जहा) नाभानीय प्रमाणे छ(गणकाए य निकाए खंधे, वग्गे तहेव रासीय पुंजे पिंडे निगरे, खंधाए आउल समूहे ॥॥ से तं खंधे) , आय, निय, २४.५, 40, राशि, , पि3,
For Private and Personal Use Only