Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगद्वारसूत्रे जाव सवलोगं फुसंति ? एगं दव्वं पडुञ्च नो संखिज्जइ भागं फुसइ, असंखिज्जइ भागं फुसइ नो संखिजे भागे फुसइ, नो असंखिजे भागे फुसइ, नो सव्वलोयं फुसइ । नाणादव्वाई पडुच्च नियमा सव्वलोयं फुसंति। एवं अवत्तव्यगदव्वाई भाणियन्वाइं ॥सू०८५॥
छाया-नैगमव्यवहारयोः आनुपूर्वी द्रव्याणि लोकस्य किं संख्येयतमभाग स्पृशन्ति ? असंख्येयतमभागं स्पृशन्ति ? संख्येयान् भागान स्पृशन्ति ? असंख्येया भागान् स्पृशन्ति ? सर्वलोक स्पृशन्ति ? । एक द्रव्यं प्रतीत्य लोकस्य संख्ये
अब सूत्रकार स्पर्शनाद्वार नामक चतुर्थ भेद का कथन करते हैं"नेगमववहाराणं" इत्यादि।
शब्दार्थ- ( नेगमववहाराणं आणुपुब्बी दयाई लोगरस कि संखे. उजहभागं फुसंति ? ) नैगमव्यवहारनय संमत अनेक आनुपूर्वी द्रव्य क्या लोक के संख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं ? ( असंखेन्जहभागं फुसंति) या असंख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं ( संखेज्जे भागे फुसंति ) या संख्यात भागों का स्पर्श करते हैं ? ( असंखेज्जे भागे फुसति ) या असंख्यात भागों का स्पर्श करते हैं ? (सत्यलोग फुसंति) समस्त लोक का स्पर्श करते हैं- ?
उत्तर- ( एग दव्वं पडुच्च लोगस्त संखेज्जहभागं वा फुसइ जाव सच लोग वा फुसइ ) व्यणुक स्कंध से लेकर अनन्नाणु स्कंध
હવે સૂત્રકાર અનુગામના સ્પર્શના નામના ચોથા દ્વરનું નિરૂપણ કરે છે" नेगमयवहाराण" त्या
शाय-(नेगमववहाराण आणुपुयी दबाइ लोगस्स किं संखेज्जइ भाग कुसंति ) नाम सन व्यवहार नयस मत भने भानुपूर्वी द्रव्य शुसोना सयतमा नागना १५० ४२ छ ? ( असंखेजइ भाग फुसंति ?) मसभ्यातमा भागना २५ रे छ १ (संखेज्जे भागे फुति ?) सन्यात भागानी २५ रे छ ? ( असंखेज्जे भागे फुसंति ?) ३ सयात नागेन। ५५ ४२ छ ? { सव्वळोगं फुसंति ?) समस्त सेना २५ ४३ छ ?
उत्तर-(एग दव पडुच्च लोगस्त संखेज्जइभाग वा फुसइ जाव सबलोग वा फुसइ) निमा २४ थी सन मनन्तY १४५ ५-तना भानु
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