Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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___ अनुयोगद्वारसूत्र . टीका-शिष्यः पृच्छति-से कि तं' इत्यादि। अथ कोऽसौ अनुगम ? इति । अनुगमः-सूत्रार्थस्य अनुकूलम् अनुरूपं वा गमनं व्याख्यानम्-अनुगमः । स नवविधानवप्रकारकः प्रज्ञप्ता प्ररूपितः, तद्यथा-सत्पदमरूपणता-सन् विधमानो योऽर्थ:-भावस्तद्विषयं पदं सत्पदं तस्य प्ररूपणं प्रज्ञापनं तदेव सत्पदमरू. पणता प्रथम कर्तव्या। अयं भाव:-स्तम्भकुम्मादीनि पदानि सदर्थविषयाणि दृश्यन्ते, शशशगगनकुसुमादीनि पदानि स्वसदर्थविषयाणि दृश्यन्ते । तत्रानु.
अब सूत्रकार अनुगम का निरूपण करते हैं"से किं तं अणुगमे ?"। इत्यादि ।
शब्दार्थ-(से कितं अणुगमे ?) हे भदन्त ! अनुगम का क्या स्वरूप है ? उत्तर-(अणुगमे नवविहे पण्णत्ते) अनुगम नौ प्रकार का कहा गया है । (तं जहा) जैसे-(संतपयपरूवणया) १ सत्पद-प्ररूपणता (दव्यप्पमाणं च) २ द्रव्यप्रमाण (खित्त ३ फुसणाय ४) ३ क्षेत्र४ स्पर्शन (कालोय, अंतर, भाग भाव अप्पापहुचेव ) ५ काल ६ अन्तर , ७ भाग ८ भाव और ९ अल्पबहुत्व । (से तं अणुगमे ) इस प्रकार यह अनुगम का स्वरूप है। सूत्र के अनुकूल अथवा अनुरूप व्याख्यान करना इसका नाम अनुगम है। यह पूर्वोक्त रूप से नो प्रकार का कहा गया है। सत्पदप्ररूपणतारूप १ प्रथम अनुगम के भेद में यह प्ररूपित किया जाता है कि जिस प्रकार से शशशृङ्ग आदि पद असदर्थ को विषय करने वाले
હવે સૂત્રકાર અનુગામનું નિરૂપણ કરે છે–
" से किं त अणुगमे ?" त्याहि.... Atथ-(से किं त अणुगमे ? ) 3 लावन् ! पूप्रस्तुत मनुगमनु સ્વરૂપ કેવું છે?
उत्तर-(अणुगमे नवविहे पण्णत्ते-तौं जहा) मनुगमना नीय प्रभाएं नव २ ४ा छ-(संतपयपरूवणया) (१) सत्५६ ५३५९ता, (दव्य पमाण च) (२) द्र०यमा ], (खित्त ३ फुस्रणा य४ (3) क्षेत्र, (४) २५शन, (कालो य, अंतर, भाग, भाव, अप्पाबहुंचेव) (५) ण, (६) मन्त२, (७) माग, (८) भाव, भने () ममत्व.
(सेत अणुगमे ) मा प्रा२नु अनुगमनु ५१३५ छे सूत्रन अनुज અથવા અનુરૂપ વ્યાખ્યાન કરવું તેનું નામ અનુગામ છે તેના ઉપર મુજબ નવ પ્રકાર કહ્યા છે. સત્પદપ્રરૂપણુતા રૂપ અનુગામના પ્રથમ ભેદમાં વિદ્યમાન પદાર્થવિષયક પદની પ્રરૂપણું કરવામાં આવે છે સસલાને શિંગડાં હોવાની
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