Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगद्वारसत्रे तत्रायभेदं निरूपयति
मूलम्-से कि तं कसिणखंधे ? कसिणखधे से चेव हयख', गयखधे । से त कसिणखधे सू० ५२ . छाया--अथ कोऽसौ कृत्स्नस्कन्धः ? कृत्स्नस्वन्धः स एव हयस्कन्धा गजस्कन्धे यावद् वृषभरकन्धः। स एष कृत्स्नस्कन्धः ॥५२॥
टीका--शिष्यःपृच्छति-से कि तं' इत्यादि ।
अथ कोऽसौ कृत नस्कन्धः ? उत्तरमाह-कृत्स्नस्वन्धः-जीवापेक्षया प्रदेशानां परिपूर्णत्वात् कृत्स्नः परिपूर्णः, स चासौ स्कन्धः, अयं तु स एव पूर्वोक्त एव हयस्कन्धो-गजस्व न्धो यावद् वृषभस्कन्धा विज्ञेयः।
ननु-हयस्कन्धादीनामे त्रापि उदाहरणत्वेन निर्दिष्टत्वात् सचित्तस्कन्धस्यैव संज्ञान्तरेण प्रकारान्तरत्वमुक्तम्, नत्वत्र ज्ञायक शरीग्भपशरीरव्यतिरिक्त
“से किं तं कसिणखधे इत्यादि ॥सत्र ५२॥ शब्दार्थ--(से किं तं कसिणख घे) हे भदन्त कृत्स्नद्रव्यस्कंध का क्या स्वरूप है ? (कसिणखधे से चेव हयख'घे गयखधे जाव उसभख धे) उत्त-हस्कंध गजस्कंध से लेकर वृषभस्कंध तक जो सचित्तस्कंध ४८ वे सूत्र में प्रकट किया गया है-वही करनस्कन्ध है। परिपूर्णस्कंध का नाम कृतनाकंध है । इस कंध में जीब की अपेक्षा प्रदेशों की परिपूर्णता रहती है।
शंका--सूत्रकारने इस कृत्रनस्कंध में भी हयादिकों को ही उदाहरणरूप से निर्दिष्ट किया हैं। और सचित्त द्रव्यस्कंध में भी उन्हें ही उदाहरण रूप से कहा है तो इनके इस कथन से यही ज्ञात होता है कि सचित्त द्रव्यस्कंध ही
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"से कि तं कसिणख धे" ध्याle
Avथ-(से किं कसिणखधे?) शिष्य गुरुने मेरो प्रश्न पूछ छ ભગવન્! કૃત્ન દ્રવ્યસ્કન્ધનું સ્વરૂપ કેવું છે?
उत्त२-(कसिणख घे से चेव हयखधे गयरबंधे जाव उसभखंधे) य२४न्ध, ગજસ્કન્ધ આદિ વૃષભસ્કન્ધ પર્યનના જે સચિત્ર ૪૮માં સૂત્રમાં પ્રકટ કરવામાં આવ્યા છે, એ સચિત અધે જ કૃત્ન દ્રવ્યસ્કન્ધ રૂપ છે પરિપૂર્ણ સ્કધનું નામ કૃત્ન સ્કન્ધ છે. આ સ્કન્દમાં જીવની અપેક્ષાએ પ્રદેશની પરિપૂર્ણતા રહે છે.
શંકા-સૂત્રકારે આ કૃત્નસ્કધમાં પણ અવ વિગેરેના ઉદાહરણરૂપથી બતાવેલ છે, અને અચિત્ત દ્રવ્યમાં પણ તેમને જ ઉદાહરણરૂપે પ્રકટ કર્યા છે. તેમના આ કથનથી એજ વાત જાણવા મળે છે કે સચિત્ત દ્રવ્યસ્કને જ અહીં
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