Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगचन्द्रिका टीका सू० २८ लोकोत्तरिकभावावश्यक निरूपणम्
पयोगरूपं येषां ते तथा आवश्यके विशेषोपयोगवन्तः, तल्लेश्याः तस्मिन् - आबश्यके एव देवया= शुभपरिणामरूपा येषां ते तथा आश्यके शुभपरिणामवन्तः, तथा - तदध्यवसिताः - तस्मिन्=आवश्यके एव तच्चित्तादिना मध्यवसितम्= अध्यवसायः क्रियासम्पादन विषयेो येषां ते तथा, आक क्रियासंपादनविषयक विचारयुक्ताः, तथा ततीव्राध्यवसानाः - तस्मिन् = आवश्यके एवं बीजं = प्रारम्भकालादेव प्रतिक्षणं प्रवर्धमानम् अध्यवसानम् इदं सकलकर्मनिर्जराजनकं तस्मादवश्यमाश्रयणीय' - मित्माकारक आत्मपरिणामो येषां ते तथा तदर्थोपयुक्ताः - आवश्यक ार्थोपयुक्ताः - 'आवश्यक सामायिक - चनुर्विशतिस्तद-वन्दन-प्रतित्र मणकायोत्सर्ग - प्रत्याख्यानरूपं यदवश्यं शाश्वतमचलमरुजमक्ष यमाबाधममन्दानन्दसन्दोहरूपं शिवसुखं प्रापयति, तस्मादवश्यं सोपयोगं प्रशस्तत र संवेगनिवें द जानना चाहिये। जिनका उपयोग विशेषरूप से आवश्यक क्रिया में लगा हुआ हैं ऐसा श्रमण आदि जन " तम्मणे" इस पद के बर्थ हुए जानना चाहिये । आवश्यक क्रियाओं के संपादन विषयक विचारों से जो युक्त हैं. ऐसे श्रमण आदिजन " तदज्झ सिए" इस पद के वाच्यार्थ हुए जानना चाहिये । तथा जिनका आत्मपरिणाम प्रारम्भकाल से ही इस प्रकार के बिचार से कि यह आश्यक सकलकमों की निर्जरा का जनक है इसलिये अवश्य आश्रयणीय है, प्रतिक्षण वृद्धिंगत होता रहता है वे श्रमण आदिजन ' तत्तिच्वज्झमाणे" इस पद के वाच्यार्थ हुए हैं । आवश्यक में जिन के परिणाम शुभ हैं वे ' तल्लेस्से" पद के वाच्यार्थ - जानना चाहिये । आवश्यक - सामा यिक चतुर्वि ंशतिस्तव, वंदन प्रतिक्रमण, कार्योत्सर्ग इनरूप हैं, सो यह अवश्य, शाश्वत, अचल, अरुन, अक्षय, अव्याबाध और अनन्द आमन्द के सन्दाहरूपशि आवश्यक हियायामां उपयोय युक्त थमेसा छ भेवां श्रमशोने गडी " तम्मणे" આ પદના વાચ્યા રૂપે પ્રયુકત થયેલા સમજવા,
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આ આવશ્યક આશ્રયણીય છે,' આ પ્રકારની વિચાર ધારાથી જેમનુ આત્મ પરિણામ આરંભકાળથી જ ચુત રહે છે, અને ક્રમે ક્રમે જૈમનુ' આ પ્રકારનું आत्मपरिक्षाम वृद्धि पातु रहेछ, मेषां श्रमवाहिने सही "तत्तिव्वज्झवसाये"
આ પદના વાધ્યાય રૂપ સમજવા. આવશ્યક ક્રિયામાં જેમના પરિણામ શુભ છે એવાં श्रमण महिने अडी “तल्ले से" या पहना वाय्यार्थ ३५ समन्वा
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“सामायिक, २४ तिर्थ शैनी स्तुति, वन, प्रतिभायु, अर्योत्सर्ग इत्याहि ३५ ने आवश्यक छे, तेथे शार्श्वत, अभ्यास, अरुन, अक्षय, अव्याणाध भने अन् આનંદના સન્દેહરૂપ (સમુદાયરૂપ) શિવ સુખની પ્રાપ્તિ અવશ્ય કરાવી દેનાર છે, અને
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