Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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... अनुयोगद्वारखने अचित्तद्रव्यस्कन्धं निरूपयति
मूलम्--से किं तं अचित्ते दव्वखंधे ? अचित्त द वखधे अणेगविहे पण्णत्त, तं जहा-दुपएसिए तिपएसिए जाव दसपएसिए सं. खिज्जपएसिए असंखिजपएसिए अणंतपएसिए । से तं अचित्ते. दव्वखधे ॥ सू० ४९ ॥
छाया-अथ कोऽसावचित्तो द्रव्यस्कन्धः ? अचित्तो द्रव्यस्कन्धः-अनेकविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-द्विप्रदेशिः त्रिप्रदेशिको यावत् दशप्रदेशिकः संख्येय प्रदेशिकः असंख्येयप्रदेशकः अनन्तप्रदेशिकः । स एषः अचित्ती द्रव्यस्कन्धः।४९। का जो व्यवहार है उसके उच्छेद का प्रसंग प्राप्त होगा। (से त सचिो दव्वखंधे) इस प्रकार से यह सवित्त द्रव्यस्कन्ध है । ।। सूत्र ४८ ॥ अब सूत्रकार अचित्त द्रव्यस्कन्धों का निरूपण श्रते हैं
"से किं तं अचित्ते दव्वखंधे' इत्यादि । ॥ सूत्र ४९ ॥
शब्दार्थः-(से किं तं अचित्ते दखंधे) हे भदन्त ! अचित्त द्रव्यस्कंध का क्या स्वरूप है ? (अचिरे दव्यवखंधे अणेगविहे पण्ण) उत्तर-अवित्त द्रव्याकंध अनेक प्रकार का कहा गया है। (तं जहा) जैसे- (दुपएसिए तिपएसिए जाव दसपएसिए संखेज्जपसिए असंखेज्जपएसिए अणंतपससिए) दो प्रदेशवाला अचित्त द्रव्यस्कध, तीन प्रदेशवाला अचित्तद्रव्यस्कंध, यावत् दश प्रदेशवाला अचित्तद्रव्यस्कंध, संख्यात प्रदेशवाला अचिनद्रव्यस्कन्ध, असंख्यात प्रदेशवाला अचित्त द्रव्यस्कंध, और अनन्तप्रदेश
(से तं दख घे) मा प्ररे सथित द्र०५२४-धना २१३५ वन मही सभात थाय छ ॥ ९० ४८ ॥
હવે સુત્રકાર અચિત્ત વ્યસ્કન્ધના સ્વરેપનું નિરૂપણ કરે છે– "से कि त अचित्त दवख धे” त्याह
था-(से किं तं अचित्त दव्वखधे?) शिष्य गुरुने मेवो न ४२ छ । है मगवन् ! पूर्व प्रस्तुत गयित्त द्र०५२४.धनु २१३५ ३छ ? ........
उत्त२-(अचित्त दवखधे अणेगविहे पण्णत्तो) मशित०४मने . URL हो.. (तंजहा) है...
(दुपएसिए, तिपएसिए जाव दसपाएसिए, संखेजपएसिए, असंखेजपएसिए, अणंतपएसिए) में प्रदेशकाण अयित्त द्रव्य२४न्ध, त्र प्रदेशकाणे। मयित्त દ્રવ્યસ્કન્ધ. એજ પ્રમાણે દસ સુધીના પ્રદેશવાળે અચિત્ત દ્રવ્યકન્ય, સંખ્યાત
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