Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगहारले द्रव्यमिति कृत्वा, नैगमस्य खलु एकोऽनुपयुक्त आगमत एकं दुष्र श्रुतं यावत् कस्मात् ? यदि ज्ञायकः अनुपयुक्तो न भवति । तदेतदागमतो द्रव्य श्रुतम् ।सू०३४॥
टीका--से किं तं आगमओ दव्यसुर्य' इत्यादि । व्याख्या पूर्ववत् ॥स०३४॥ उनमागमयो द्रष्यभुतम् । अथ नो आगमतो द्रव्यश्रुतमाह
मूलम्-से कि त नो आगमओ दध्वसुयं ? नो आगमको दषसुयः तिविह पक्षणसं, त जहा-जाणयसरीरदव्वसुय', भविषसरीरदासुयं, जाणयसरीर-भवियसरीरवइरित्तं दव्यसुयं ।सू०३।।
उत्तर:-(आजमओ दव्वसुर्य) आगमका आश्रय कर के द्रव्यश्रुत का स्मरण इस प्रकार से है-(जस्स णं सुएति पय सिविखयं ठियं जियं जाब णो अणुप्पेहाए) जिस साधु आदि को श्रुनपद शिक्षित है स्थित है जित है। यात्पद से मित है, परिजित है नामसम है, धेषसम है, अहीनाक्षर है, अनरक्षर है,अव्याविद्धाक्षर (उलट पुलट पनेसे रहित) है, अस्खलित है, अमिलित है, अव्यत्यानेडित है, परिपूर्ण घोषवाला है. व ण्ठो ठविप्रमुक्त है, और गुरुवाचनोपगत है । इसतरह वह साधु आदि वाचना से पृच्छनासे परिवर्तना (आवृत्ति)से और धर्मकथा से उसमें वर्तमान हैं परन्तु उपयोग से वर्तमान नहीं हैं, अतः उपयोग से रहित हं ने के कारण वह साधु आगम को आश्रित कर के द्रव्यश्रुत माना गया है । (कम्हा) क्योंकि (अणुवओगो दवमिति कटु) ऐसा आगम का बचन हैं कि जो उपयोग से रहित होता है वह द्रव्य माना जाता है। इसकी व्याख्या १४ व सूत्र के समान जाननी चाहिये। सूत्र ॥ ३४ ॥
उत्तर-(आगमओ दव्वसुय) मागभने। पाश्रय शेने द्रव्यवतनु । પ્રકારનું સ્વરૂપ છે –
(जस्स णं सुएत्ति पय सिक्खियं ठिय जिय जाव णो अणुप्पेहाए) २ સાધુ અદિને થતપદ શિક્ષિત છે, સ્થિત છે, જિત છે, મિત છે, પરિજિત છે, નામસમ છે, ઘોષસમ છે, અહીનાક્ષર છે, અનત્યક્ષર છે, અન્યાવિદ્ધાક્ષર અખલિત छ, भिसित छ, भव्यत्याडित छ, परिवाषयुत छ, ४ 818 विप्रभुत छ, અને ગુરુવાચનપગત છે, આ રીતે તે સાધુ આદિ વાચનાથી, પરિવર્તનાથી પૃચ્છ નથી, પરિવર્તનથી અને ધર્મકથાથી તેમાં વર્તમાન છે, પરંતુ ઉપગ પરિણભથી તેમાં વર્તમાન પ્રવૃત્ત) નથી, અને તેથી ઉપગથી રહિત હેવાને કારણે તે સાધુને भागभनी अपेक्षाये द्रव्यश्रुत मानपामा माने छ; (फम्हा) २५३ (अणुवओगो दव्वमिति कई) मारमनु मे ययन छ ३२ ५५यायी २हित य छઅનુપચુકત પરિણામવાળો હોય છે તેને દ્રવ્યરૂપ માનવો જોઈએ. આ રાત્રમાં વપરાયેલાં પદોને ભાવાર્થ ૧૪માં સૂત્રમાં આપ્યા પ્રમાણે સમજવે. સૂ૦ ૩૪
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