Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र ४३ लोकोत्तरिकनोआगमतो भावश्रतनिरूपणम् २०९ तीर्थ कृद्धिः प्रणीतत्वाद् लोकोत्तरि भावनतम् । तत्स्वरूपमाह-'त जहा' इत्या दिना-तद्यथा-आचारः, सूत्रकृत, थान, समवायो विवाहप्रज्ञप्तिः, ज्ञाताधर्मकथाः, उपासकदशाः, अन्तकृत शाः. अनुत्तरापपातिकदशाः, प्रश्नव्याकरणानि विपाकश्रुत, दृष्टिवादश्च । सर्वज्ञप्रणीतं द्वादशाङ्गरूपं यद् गणिपिटक. तदर्थों पयागो भावश्रुतं उपयोगो भावनिक्षेप इति वचनात् । स चोपयोगश्चरणगुणसमन्वितश्चेत् तर्हि नो आगमतो भावत' भवति. चरणगुणस्य क्रियारूपत्वेन आनागमत्वात्. नो शब्दस्य च देशपतिषेधकत्वेना यणात् । उपयोगचारित्रवान् (गणिपिडगं पणीय) गणिपिटक प्ररूपित हुआ है लोकोत्तर तीर्थकरों द्वारा प्रणीत होने के कारण लोकोत्तरिक भावभत है। 'तं जहा' द्वादश अंगों के नाम इस प्रकार है ।-(आयारो) आचारांग (सूयगडो सत्रकृतांग (डाणं) स्थानांग (समवाओ) समवायांग (विवाह एण्णसी) विवाह प्राप्ति'भगवती सत्र' (नायाधम्मकहाओ ज्ञाता धर्मकथा ( उवासगदसाओ) उपासक दशांग (अंतगडदसा) अन्तकृतशाग (अणुत्तराववाइयदसाआ) अनुत्तरापपातिक दशंग (पण्हावागरणाई) प्रश्नव्याकरण, (विवागसुय) विपाकश्रुत (दिहिवाओ य) आर दृष्टिवाद । इन बारह अंगों के अर्थ में जा उपयोगरूप परिणाम है वह भाव श्रुत है "उपयोगा भावनिक्षेप" है, ऐसा सिद्धान्त का वचन है। यह उपयोगरूप परिणाम यदि चरणगुण-चारित्र गुण से युक्त है तो वह नोआगम से भावश्रुत है क्यों कि चरण गुण क्रियारूप है और क्रिया आगम नहीं होती है। इस प्रकार यहां नोशब्द में आगम: एकदेश में निषेधक हाने से देश प्रतिषेधकता बन जाती है । यद्यपि उपयोग आर चारित्र गुण से भावत३५ छ. ( जहा) ते ६A (भार) मनाना नाम नीय प्रभाव छ--(आयारो) (१) मायासंग, ( यगडा) (२) सुतin. (ठाणं) (3) स्थानां, (समवाओ) (४) सभायां (विवाह पण्णत्ती) (५) विचार प्रज्ञप्ति (मरावती सूत्र) (नाया धम्मकहाओ) (6) ज्ञाता था. (उवासगदसाओ) (७) SIRBin. (अंतगडदसाओं) (८) सन्तत. (अणुत्तरोववाइयदसाओ) (6) अनुत्तरापातिin. (पण्हावागरणाई) (१०) प्रश्न०या४२४. (विवागसुर्य) (११) विश्रुत मने 'दिडिवाओ य' (१२) दृष्टिपा. मा मारे मनाना अर्थमा ७५या।३५ परिणाम छ तेनु नाम मावश्रुत छ. २५ , "उपयोगा भावनिक्षेपः" मा प्रानु સિદ્ધાન્તનું વચન છે. આ ઉપયોગ રૂપ પરિણામ જે ચરણગુણ-ચરિત્રગુણથી યુક્ત હેય તે તે આગમની અપેક્ષાએ ભાવથત છે, કારણ કે ચરણગુણ ક્રિયારૂપ હોય છે, અને ક્રિયા આગમરૂપ હોતી નથી. આ પ્રકારે અહીં ને ૫૦ એકદેશની અપેક્ષાએ આગમનું નિષેધક હેવાથી દેશપ્રતિષેધકતા ઘટિત થઈ જાય છે. જો કે ઉપ
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