Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुमोगपत्रिका दीका बत्र ३९ भावश्रुतनिरूपणम् सानो आगमतो द्रध्यक्षुतम् । द्रव्यश्रुतमपि सर्व निरूपितमिति चयितुमाह'सेत दख्खमुइति । तदेतद् द्रव्यश्रत वर्णित ॥मू० ३८॥
- अप.मावत निरूपयति- . ..मूलम्--से कि तं भावसुयं ? भावसुयं दुविहं पपणतं, तं जह
आगमओ य, नोआगमओय ॥सू० ३९॥ T: छायां-अयः किं तद् भावभुतम् ? भावभक्त विविध प्रज्ञा. तद्यथा-आगमसब नोभागमतय १०.३॥
१ टीका-शिष्य पृच्छति-से कि त भावसूय' इति । अ किं तद् भावश्रुतम् ? इति, उत्तरमाह-मावसुय" इत्यादि । भावभुतम्-इह श्रुतपदार्थोमीर से व्यतिरिकाद्रव्यभुत है । ( नोलापमयी दम्वसुर्य) इस तरह नेमागम के अधिकारके समस्तव्यथुन का निरूपण हो चुका । (सेतं खसुर्य) यही सब द्रव्यश्रुत का स्वरूप है। ॥मत्र ३८॥ ...
अब मूत्रकार-भावश्रुत का वर्णन करते है"से किं तं भावसुयं" इत्यादि । सूत्र ॥ ३९ ॥ . ......
शब्दार्थ:-(से कि त) शिष्य पूछता है कि हे भदन्त ! पूर्व प्रक्रान्त भावश्रुन का क्या स्वरूप है?
उत्तर-(भावसुमं) भावश्रुत (दुयिह' पणत) दो प्रकार का कहा गया है। श्रुत रूप पदार्थ के अनुभव से युक्त जो साधु आदि जीव है वह भार पद का वाच्यार्थ है । भाव और श्रुत इन दोनों में अभेद के उपचार से भावश्रुत साध्वादि को कहा गया है । इसतरह भाव जो है वही श्रुत बन जाता है। इम्बम)मा शत नामागम द्र०यश्रुतना ये हा नि३५ मी समास
(से तं दमयं) भने २०५श्रुतना म नु नि३५७ ५९ मही' हे सार , ॥२० ३८ ॥... .... "से कितं भावमयं"त्याlk-..
शा-(से कि त भावसुयं?) शिष्य शुरुमे वो 4 छ । ભાવન પર્વ પ્રસ્તુત ભાઈશ્રુતનું સ્વરૂપ કેવું છે?
उत्तर-(भावमुयं दुविहं पण्णत्त) भापश्रुत मे ॥२नु छे. श्रुत३५ ५४।2 અgવાવથી યુક્ત જે સાધુ આદિ જ હોય છે તેઓ ભાવ શબ્દના વાવ્યર્થ જ ભાવ અને શ્રત આ બન્નેમાં અભેદના ઉપચારની અપેક્ષાએ સાધુ આદિને છે તેવામાં આવેલ છે. આ રીતે જે ભાવ છે એજ શ્રત બની જાય છે.
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