Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगचन्द्रिका टीका.सू०२९ भावावश्यकपर्यायनिरूपणम्
१७९ ___ छाया-तस्य खलु इमानि एकाथिकानि नानाघोषाणि नानाव्यजनानि नामधेयानि भवन्ति, तद्यथा--
आवश्यकम् १ अवश्यकरणीयम् २ ध्रुवनिग्रहो ३ विशोधिश्च ४।
अध्ययनपङ्कवर्गः ५ न्यायः ६ आराधना ७ मार्गः ८ ॥१॥ श्रमणेन श्रावकेण च अवश्यकर्त्तव्यकं भवति यस्मात् ।
अन्तेऽहनि शस्य तस्मादावश्यकं नाम ॥२॥ तदेतदावश्यकम् ॥ सू० २९॥
अब सूत्रकार भावावश्यकका पर्यायों को कहते हैं"तस्सणं इमे" इत्यादि ! सूत्र ॥ २९॥
शब्दार्थ:-(तस्स गं) उस आवश्यक के (इमे) ये वक्ष्यमाण (एगडिया) एक अर्थवाले (नामधेज्जा) नाम हैं। ये नाम (णाणा घोसा णाणा वंजणा) भिन्न २ उदात्त आदि स्वरों एवं कार आदि अनेक व्यजनोंसे सहित हैं। (तंजहा) वे इस प्रकारसे है।-(आवरसयं) १ आव.यक (अवस्स करणिज्ज५) अवश्यकरणीय, (धुवनिग्गहो) ध्रुवनिग्रह ३, (विसाही य) विशोधि ४ अज्झयण छक्कवग्गो)अध्ययनषट्कवर्ग ५, (नाओ) न्याय ६, (आराहणा) आराधना ७, (मग्गो) मार्ग इनमें आवश्यक शब्दका अर्थ (से किं तं आवस्सयं) इसके पहिले नावेसूत्र में स्पष्ट कर दिया गया है। अवश्यकरणीय-मोक्षार्थी जनों द्वारा यह नियमसे अनुष्टेय (करने योग्य) होता है इसलिये इसका नाम अवश्यकरणीय है। ध्रुव હવે સૂત્રકાર ભાવાવશ્યકના પર્યાયવાચી શબ્દોનું નિરૂપણ કરે—
"तस्सणं इमे" त्याहि
(तस्सणं इमे एगढिया नामधेज्जा) ते मापश्यना नीय प्रमाणे : नामा छ
(णाणा घोसा णाणा वंजणा) ते नाभो ॥ त माह २५२। भने ४४२ मा भने व्यनाथी युइत छ. (तंजहा) ते नाम नाथे प्रभा छ(आवस्सयं) (१) आवश्य४, (अवस्सकरणिज्ज) (२) मा१२५ ४२७॥य, (धुवनिग्गहो)पनिड, (विसाहोय) (४) विधि, (अज्झयणछक्कवग्गो) (५) अध्ययषट् , (नाओ) (६) न्याय, (आराहणा) (७) माराधना मने (मग्गो) भाग (१) 'मा११५४' 20 पहने। म “से किं तं आवस्सयं" - प्रभसूत्रथा १३ यता નવમાં સૂત્રમાં પ્રકટ કરવામાં આવ્યું છે. (૨) “અવશ્યકરણીય-મેક્ષાથી જને દ્વારા તે અવશ્ય અનુદ્ધેય (અનુષ્ઠાન કરવા ગ્ય, આચરણય) હોય છે, તેથી તેનું અવશ્વકરણીય નામ પડ્યું છે.
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