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समयार्थबोधिनो टीका प्र. श्रु. अ. ३ उ. २ अनुकूलोपसर्गनिरूपणम् . १३
अन्वयार्थः--(नाइसंगेहि) ज्ञातिसगैः-मातापितसम्बन्धैः (विवद्धो) विवद्धः (पिट्टओ) पृष्टाः (परिसप्पंति) परिसर्पन्ति साधोरनुकूळमाचरन्ति स्वजनाः (अवि) अपि (नवगहे) नवग्रहे (हत्थी व) हस्ती इव (सुयगोचरए) सूतिगौरिवा द्रगा यथा नवपम्रता गौः स्ववत्ससमीपे एव तिष्ठति तथैवतस्य परिवारा एतस्य समीपे एव तिष्ठन्तीति भावः ॥११॥ टीका-'नाइसंगेहि ज्ञातिसंगैः, मातापितृ कलत्रमित्रादिस्वजनवौँ । 'विबद्धो'
शब्दार्थ-'नाइ संगेहि-ज्ञातिसंगैः' माता पिता आदि स्वजनवर्ग के संबंध द्वारा 'विपद्धो-विबद्धः' बंधे हुए साधु के 'पिट्ठो पृष्टतः' पीछे पीछे 'परिसप्पति-परिसर्पन्ति' उनके स्वजनवर्ग चलते हैं 'अविअपि' और 'नवगहे-नवग्रहे नवीन पकडे हुए 'हस्थीव-हस्ती इव' हाथी के समान उसके अनुकूल आचरण करते हैं तथा 'सुधगोव्ध अदाएसूत गौरिवादरगा' नई व्याई हुई गाय जैसे अपने बछडे के पास ही रहती है उसी प्रकार उनका परिवारवर्ग उसके पास ही रहते हैं ॥११॥ ___अन्वयार्थ-मातापिता आदि के संबंधो से बंधे हुए साधु के पीछे पीछे स्वजन चलते हैं और नवीन पकडे हुए हाथी के समान उसके अनुकूल व्यवहार करते हैं जैसे नवीन पाई हुई गाय अपने बछडे के समीप ही रहती है उसी प्रकार वे भी उसी के पास रहते हैं ।११।। टीकार्थ--मातापिता कलत्र मित्र आदि स्वजनों के सम्बन्ध से
At - 'नाइसंगेहि-ज्ञ तिसंगैः' माता-पिता को३ २१४ नाना समय द्वारा विबद्धो वियद्धः' मचाये साधुना पिटु श्रो-पृष्ठतः ॥१५॥४॥ 'परिमपंति -परिसर्पन्ति' तमना सन यावे छे. 'अवि-अपि' भने 'नवग्गहे-नवग्रहे ना ५४ये 'हत्थीव-हस्ती इव' हथीनी रे तेभने अनु. कुण माय२५१ ४२ छ तथा 'सुयगोच अदूरए-सूतगौरिवादूरगा' नवी पी यायेस ગાય જેમ પિતાના વાછરડાની પાસે જ રહે છે તેજ પ્રકારે તેમને પરિવાર १ तेनी पासे । २९ छ. ११॥
સૂત્રાર્થ–જેવી રીતે નવી વિયાયેલી ગાય પિતાના વાછડાની સમીપમાં જ રહે છે, એ જ પ્રમાણે માતા-પિતા આદિના સંબંધથી બંધાયેલા સાધુની પાછળ પાછળ તેના સંસારી સ્વજને ચાલે છે, ને નવા પકડી લાવેલા હાથીની સાથે જે વ્યવહાર કરવામાં આવે છે, એ તેને અનુકૂળ વ્યવહાર તેની સાથે કરે છે. ૧૧
ટીકાર્થ–માતા-પિતા, પત્ની, મિત્ર આદિ સ્વજનેના સંબંધથી બંધાયેલા
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