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समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ५ उ.२ नारकीयवेदनानिरूपणम् ४३३
अन्वयार्थ:--(संपाहिया) संबाधिताः पीडिताः (दुक्कडिणो) दुष्कृतिनः पापफर्माणः, (अहो या राओ य परितपमाणा) आंद च रात्रौ च परितप्यमाना अहनिशं पीडागलुभवन्तः (थति) स्तनन्ति-दन्ति (एगंतकूडे) एकान्तकूटेएकान्ततो दुःलस्थाने (महत) महति-विस्तरे (विसमे) विषमेऽतिकठिने (नरए) नरके (कूडे) कूटेन-गलयंत्राशेन (हता उ) इतास्तु निहताः सन्तः (तस्था) तत्स्थाः तत्र-तस्मिन् दिवसे स्थिताः-स्तनंत्येव केवलमिति ॥१८॥ 'संबोडिया' सत्यादि।
शब्दार्थ-संपादिया-संसाधित निरन्तर पीडिा लिये जाते हुए 'दुऋडिगो-दुनिनः पारी महो रामओ य हरिपमाणा
अहि च रामौ च परितमानविपनाको भोर हुतिस्तनन्ति' हाल भरते रहते हैं " डे भानटे' केव। दुःस्त्र का स्थान 'मह मही' विस्तृत विलो-सिपमे अत्यन्त कठिा नरएनरके नरक में पडे हुए प्रापी कूडे -कूटन' गले में काली डालकर 'हता उ-इतास्तु' मारे जाते हुए लत्या-तत्स्था' उसमें रहने वाले नारकी केवल रुपन ही करते हैं ॥१८॥ ___ अन्वयार्थ-नरक में पीड़ा पाते हुए पापकर्मी जीव दिनरात अत्यन्त परिताप का अनुभव करते हुए रुदन करते रहते हैं। वे एकान्त दु:ख का अनुभव करते हैं। उस विषम एवं विस्तृत नरक में गलपाश (फांसी) से पीडित होकर रोते ही रहते हैं ॥१८॥
'संवाहिया' त्या
साथ-'संवाहिया-संबाधिताः' निरन्तर पीडित ४२वामा मातi 'दुकडिणो-दुष्कृतिनः' पापी 'अहो य राओ व परितप्पमाणा-अति च रात्रौ च परितप्यमानाः' हवस रात तापने लगता धणंति-स्तनंति' ३४न ४२०i.२३ छ 'एगंतकूडे-एकान्तकूटे' aa gम स्थान 'महंते-महति' विस्तृत विसमेविषमे' अत्यन्त 36 'नरए-नरके' १२i val प्राणी 'कूडेन-कूटेन' आभासी नामीन 'हता उ-हतास्तु' भा२पामा सावता तत्था- तत्स्थाः' तमा રહેવાવાળા પ્રાણી કેવળ રૂદન જ કરે છે. ૧૮
સૂત્રાર્થ-નરકમાં યાતનાઓનું વેદન કરતાં પાપકમી છ દિનરાત અત્યન્ત પરિતાપને અનુભવ કરવા થકી રુદન કર્યા કરે છે. તેઓ એકાતઃ (સંપૂર્ણ રૂપે) દુઃખને જ અનુભવ કરે છે. તે વિષમ અને વિસ્તૃત નરકમાં નારકનાં ગળામાં ફસે નાખવામાં આવે છે, અને તેની પીડા અસહ્ય થઈ પડવાથી તેઓ કરુણાજનક આકંદ કર્યા કરે છે, ૧૮
सू० ५५
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