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सूत्रकृताङ्गसूत्र अन्वयार्थ:-- (वेरी वेराई कुवई) वैरी-जीवोपमर्दनकारी-वैराणि-जन्मसानुग्धीनि करोति (तो वेरेहिं रजई) ततः वैरै। नवीनरैः रज्यते सम्बध्यते (चारमा य पावशेषगा) आरंभाः सावधानुष्टानरूपाः पापोपगा:-पापम् उपसामी.
पेन गच्छन्तीति, 'अंतसो दुक्खफासा' अन्तशः दुःखस्पर्शाः नवीनं "दुःव मुत्पादयन्तीति ।।७।
टीका - 'वेरी' वैरी-पडूजीपनिकायोपमर्दकारी पुरुषः 'वेराई' वेराणि यं हिनस्ति तेन सह धैरभावम् 'कुम्बई' करोति, यं माणिविशेष मेकदा हिनस्ति तेन सह जन्मशतानुबन्धीनि वैराणि बध्नाति । 'तओ' ततः पुनरपि 'वेरेहि वैरैः वाला पुरुष, अनेक जन्म के लिये जीवों के साथ वैर करता है तो वेरेहिं रजनद-ततः वैरैः रज्यते' फिर वह दूसरा नया वैर करता है 'आरंभा पावोगा-आरंभाः पापोपगा:' जीवहिंसा पाप उत्पन्न औरती है 'अंजसो दुक्खफासा-अन्तशः दुक्खस्पर्शाः' और अन्त में दु.ख देती है ॥७॥ ३ अन्वयार्थ--वैरी अर्थात् जीवों की हिंसा करने वाला सैकड़ों अन्मों तक चालू रहने वाला पैर बाँधता है। फिर नया वैर उत्पन्न करता है। आरंभ पापरूप होते हैं और अन्त में दुःख को उत्पन्न करते हैं ॥७॥
टीकार्थ-षट् जीवनिकायों का उपमनकारी अर्थात् छकायों की विराधना करने वाला पुरुष, जिसकी हिंसा करता है, उसके साथ धेरभाव उत्पन्न करता है । अर्थात् जिस प्राणी का एक वार घात करता है, उसके साथ सेकड़ों जन्मों तक चालू रहने वाला विधि-वैर घाँधता ५३५ अने: म भाट वानी स.थे ३२ ४३ छ. 'तो वेरे हे रज्जइ-ततः वैरैः रज्यते' ते ५७ ते मी न ३२ ४२ छे. 'आरंभा पावोवगा-आरंभाः: पापोरगाः' ७१ डिस५५५ ५-३ छ. 'अंतसो दुःखफासा-अन्तशः दुक्खस्पर्शा:' भने छेटे म हे छ. ७.. 1. અન્વયાઈ–વેરી અર્થાત જીવોની હિંસા કરવાવાળાઓ સેંકડે જન્મ સુધી ચાલુ રહેનારૂં વેર બાંધે છે. અને નવું વેર ઉત્પન્ન કરે છે. અારંભ પાપરૂપ હોય છે, અને અને દુખ પ્રાપ્ત કરે છે. માદા - ટીકાર્થ–ષડૂજીવનિકોનું ઉપમર્દન (હિંસા) કરવાવાળા અથવું કાની વિરાધના કરવાવાળા પુરૂષ, જેની હિંસા કરે છે, તેની સાથે વેરભાવ ઉત્પન કરે છે. અર્થાત્ જે પ્રાણીને એકવાર ઘાત કરે છે, તેની સાથે સેંકડો
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