Book Title: Sutrakritanga Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

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Page 694
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रकृताङ्गसूत्रे मात्वा गुरूपदेशादिना सत्यधर्मस्वरूपं श्रुत्वा, ज्ञानादिगुणोपार्जने संलग्नः पापं. परित्यज्य विमलास्मा भवति साधुरिति ॥१४॥ मूलम्-जं किंचुंबक्कम जाणे आउखेमस्स अप्पण। तस्सेव अंतराँ खिप्पं सिक्वं लिक्खेज्ज पंडिए ॥१५॥ छाया-यं कंचिदुपक्रमं जानीयाद आयुः क्षेमस्य आत्मनः । ___ तस्यैवान्तरा क्षिप्रं शिक्षा शिक्षेत पण्डितः ॥१५॥ अन्वयार्थ:-- (अपणो आउखेमस) आत्मनः-स्वस्यायुःक्षेमस्य-स्वायुषः (जं किंचुवककम जाणे) यत् किञ्चिदुपक्रमं जानीयात्-स्वायुषः क्षयकालं ज्ञात्वा (तस्सेव अंतरा) तस्यै वान्तरा-तन्मध्ये एव (खिप्पं) क्षिप्रं-शीघ्रम् (पण्डिए) पण्डितः परिणामों से मुनि मोक्षमार्ग में उपस्थित हो। वह समस्त प्राणातिपात आदि पापों का त्यागी हो। ... आशय यह है कि साधु अपनी ही निर्मल बुद्धि से अथवा गुरु आदि के उपदेश से सत्य धर्म के स्वरूप को जानकर, ज्ञानादि गुणों के उपार्जन में तत्पर और पापों का परित्याग कर के निर्मल होता है ॥१४॥ 'जं किंचुवकमं जाणे' इत्यादि। शब्दार्थ-'अप्पणो आउखेमरस-आत्मनः आयुः क्षेमस्य' विद्वान पुरुष अपनी आयुका 'जंक्किम जाणे-भत किंचित् उपक्रमं जानीयात्' क्षयकाल यदि जाने तो 'तस्लेव अंरा-तस्यैव अन्तरा' उसके अंदर ही 'खिप्पं-क्षिप्रं' शीघ्र 'पंडिए-पण्डितः' विहान मुनि 'सिक्ख-शिक्षा' संलेखनारूप शिक्षा 'सिक्खेज्जा- शिक्षेन' ग्रहण करे ॥१५॥ अन्वयार्थ-ज्ञानवान् पुमन अपनो आयु का कोई उपक्रम आयु કહેવાનો આશય એ છે કે સાધુ પિતાની જ નિમલ બુદ્ધિ વડે અથવા ગુરૂ વિગેરેના ઉપદેશથી સત્ય ધર્મના સ્વરૂપને જાણીને જ્ઞાન વિગેરે ગુણોના ઉપાર્જનમાં તત્પર રહીને તથા પિનો ત્યાગ કરીને નિર્મળ બની જાય છે. ૧ઠા जं किंचुवक्कम जाणे' / शहाथ - 'अपणो आउकरपस्स-आत्मन: आयुःक्ष्यस्य' विद्वान् ५३१ पोताना मायुष्यने। 'ज किंचुवकम जाणे-यत् किंचित् उरक्रमं जानीयात्' क्षय ने Mat तो 'तस्सेव अंतरा-तस्यैव अन्तरा' तेनी म४२ ४ 'खिप्प-क्षिप्रे' हीया 'पंडिए-पण्डितः' ५डित मुनि सिक्खं-शिक्षा' समना ३५ शिक्षाने 'सिक्खेज्जा-शिक्षेत' अरय ४३. ॥१५॥ અવયાર્થ-જ્ઞાનવાન પુરૂષ પિતાના આયુષ્યને કેઈ ઉપકેમ એટલે કે For Private And Personal Use Only

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