Book Title: Sutrakritanga Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

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Page 720
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रकृतानसूत्रे छाया--अल्पपिण्डाशी पानाशी, अल्पं भाषेत सुव्रतः। क्षान्तोऽभिनिवृतो दान्तो, वीतगृद्धिः सदा यतेत ॥२५॥ अचयार्थ:--(अप्पपिंडासि) अल्पपिण्डाशी-अल्पाहारकरणशीलः (पाणासि) पानाशी-अल्पजलाभ्यवहरणवान् (सुब्बए) सुव्रता-साधुः (अप्पं मासेज्ज) अल्पंपरिमितं च भाषेत (खते अभिनिव्वुडे) क्षान्तः-शान्तिप्रधानः अभिनितो लोभादिजयान्निरातुरः (दंते वीतगिद्धी सदा जए) दान्तो-जितेन्द्रियः बीतगृद्धिःआशंसादोषरहितः सदा-सर्वदा सर्वकालं संयमानुष्ठाने यतेत-यत्नं कुर्यादिति।२५। 'अपपिंडासि' इत्यादि। शब्दार्थ--'अप्पपिंडासि-अल्प पिण्डाशी' साधु उदर निर्वाह के लिये अल्प आहार करे 'पाणासि-पानाशी' और जल पान भी थोडा करे 'सुब्बए-सुव्रता' साधु पुरुष अप्पं भासेज्ज-अल्पं भाषेत' थोडा पोले अर्थात् विना प्रयोजन न बोले 'खंते अभिनिचुडे-क्षान्तः अभि. निर्वृतः' एवं क्षमाशील लोभादि रहित 'दंते वीत गिद्धी-दान्तः बीतगृद्धि' जितेन्द्रिय और विषय भोग में आसक्ति रहित होकर सदा संयमका अनुष्ठान करे ॥२५॥ ___ अन्वयार्थ-साधु अल्पाहारी हो, अल्प जल का पान करे, अल्प भाषण करे, क्षमाशील हो, लोभ आदि को जीत कर आतुरतारहित हो, जितेन्द्रिय हो और गृद्धि रहित हो। सदा संयमानुष्ठान में उद्योग करने वाला हो ॥२५॥ 'अप्परिडासि' या Avai --अप्पपिंडासि-अल्पपिण्डाशी' साधु १२ निर्वाड भाटे ५६५ माहार ४३ 'पाणासि-पानाशी' ने १३५ ५५५ थोड ४३ 'सुब्बए-सुव्रतः' साधु ५३५ 'अप्पं भाज्ज-अल्पं भाषेत' या माये मात् प्रयो १२ मे.नही खते अभिनिव्वुडे- क्षान्तः अभिनितः' क्षमाशील थी हित 'दंते वीतगिद्धी-दान्तः वीतगृद्धिः' तेन्द्रिय तथा विषयलागोभी मालित विनाना થઈને સદા સંયમનું અનુષ્ઠાન કરે પરપા અનયાર્થ–સાધુએ અલપાહારી હોવું જોઈએ, અપજલનું પાન કરવું જોઈએ અ૮૫ બેલિવું જોઈએ. લેભ વિગેરેને જીતીને આતુર પણ વિના રહેવું. જીતેન્દ્રિય થવું અને ગૃદ્ધિ-આસક્તિ વિના રહેવું. તથા હમેશાં સંય. મના અનુષ્ઠાનમાં ઉદ્યોગ પરાયણ રહેવું જોઇએ. પર પા For Private And Personal Use Only

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