Book Title: Sutrakritanga Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

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Page 670
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रकृतागसूत्रे १ अन्वया--(असंजया) असंयता:-असंयमिनः (मणसा वचसा चेव कायसा) मनसा वचसा चैव कायेन-कृतकारितानुमतिभिः (अंतसो) अन्तश:-कायेनाशकॉषि मनसेव पापानुष्ठानानुमत्या (भारओ पर भी वावि) आरतः परतो बॉपि-इहलोकपरलोकार्थम् (दुहा वि) द्विधापि स्वयं करणेन परकारणेन च जीवपिराधका भवन्तीति ।।६।। टीका-'असंजया' असंपता मनोवाकायैः पुरुषाः परवञ्चकाः। 'मणसा' मनसा 'वयसा' वचसा 'चेव' च एव, तथा कायसा' कायेन-शरीरेण, अनेन शरीरवाङ्मनसा प्रवर्त्तने कारणत्वं दर्शितम् । 'अंतसो' अन्तशः-शरीरादिभिरसमथा अपि चिन्तनमात्रेणैव परघातमिच्छन्ति कालशौकरिकवत् 'आरओ' 'अंतसो-अन्तशः' कायाकी शक्ति न होने पर मनसे ही 'आरओ परओ वावि-आरतः परतः वापि' इसलोक एवं परलोक दोनों के लिये 'दुहावि-विधापि' करने और कराने दोनों प्रकार से जीवों का घात कराते हैं।।६॥ - अन्वयार्थ-असंयमी पुरुष मन से, वचन से और काय से, तथा स, कॉरित और अनुमोदन से एवं काय से असमर्थ होने पर मन से पाप के अनुष्ठान की अनुमोदना करके, इस लोक और परलोक दोनों के लिए स्वयं करने और कराने से दोनों प्रकार से जीवों के विराधक होते हैं ॥६॥ ..ट्रोकार्य-जो पुरुष मन, वचन और काय से असंयमी हैं-परवंचक (दूसरे को ठगने वाले) हैं, वे मन, वचन, काय से और शरीर से असमर्थ होने पर चिन्तन मात्र से दूसरों के घात की इच्छा करते हैं। तपय त अर्थात् यिनी २४ती न पाता भनथी 'आरओ पर ओवा विबारवः परतः वापि' भाले र मन ५ १४ मे मन्ना भाटे 'दुहावि-द्विधापि' म भने शव के भन्ने ५२थी वान धात २ . ॥६॥ .. भन्याय-- मयभी ५३॥ मनथी, क्यनयी मने आयायी तथा त, પરિત અને અનુમે દનધી તથા કાયથી અસમર્થ–અશક્ત થાય ત્યારે મનથી જ પોપનાં અનુષ્ઠાનની અનુમે દના કરીને આલોક અને પરલેક બને માટે પિત કરવા અને કરાવવાથી અર્થાતુ બેઉ પ્રકારથી જીવેની વિરાધના કરે છે. દા ટીકાર્યું–જે પુરૂષ મન, વચન, અને કાયાથી અસંયમી હોય છે. પરહાશક-બીજાને ઠગવાવાળા હોય છે, તેઓ મન વચન અને કાયાથી અને જીસી અશક્ત થાય ત્યારે વિચાર માત્રથી બીજાઓના ઘાતની ઈચ્છા કરે છે, For Private And Personal Use Only

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