Book Title: Sutrakritanga Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

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Page 676
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रकृताङ्गसूत्रे पापकर्माऽनुष्ठातारः चतुर्गतिभ्रमणहेतुकं साम्परायिकं कर्म बनन्ति, तश-राग द्वेषकषायकलुषितान्तःकरणाः कुर्वन्ति-अनेकविध कर्म इतिमानः ॥८॥ ___ तदेव बाळवीर्यमुपदर्थ तदुपसंहरबाह-'एयं' इत्यादि । मूलम्-एवं सकामवीरियं बालाणं तु पंवेइयं । इत्तो अम्मीरियं पंडियाणं सुणेह में ॥९॥ छाया-एतत्सकर्मवीर्य बालानां तु पवेदितम् । . __अतोऽकर्मवीयं पण्डितानां शृणुत मे ॥९॥ प्रकार के असाता रूप दुःख को उत्पन्न करने वाले होते हैं । सत् के विवेक से रहित अज्ञानी जीव ही ऐसे कर्म उपार्जन करते हैं। .. तात्पर्य यह है कि स्वयं पाप कर्म का अनुष्ठान करने वाले अज्ञानी जीव चतुर्गति में भ्रमण करने के कारण साम्परायिक कर्म का बन्ध करते हैं तथा जो राग द्वेष से कलुषित हैं, वे अनेक प्रकार के कर्म उपार्जन करते हैं ॥८॥ इस प्रकार बालवीर्य को दिखला कर उपसंहार करते हैं'एयं सकम्मवीरियं' इत्यादि । शब्दार्थ-'एयं-एतत्' यह 'बालाणं तु-यालानां तु अज्ञानियों का 'सकम्मवीरियं पवेड्यं-सकर्मवीर्य प्रवेदितम्' स्वकर्मवीर्य कहागया है 'इत्तो-अत:' अब यहां से 'पंडियाणं-पंडितानाम्' उत्तम साधुओं का 'अकम्मवीरियं-अकर्मवीर्यम्' अकर्मवीर्य 'मे-मे' मेरेसे 'सुणेह-शृणुन' हे शिष्यो सुनो।।९। પ્રકારની અશાતા (અશાંતિ) રૂપ દુઃખને ઉત્પનન કરવાવાળા હોય છે. સત અસના વિવેક વિનાના અજ્ઞાની છવજ એવા કર્મોનું ઉપાર્જન કરે છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કેપિત-પાપકર્મનું અનુષ્ઠાન કરવાવાળા અજ્ઞાની જીવો ચતુર્ગતિમાં ભ્રમણ કરવાને કારણે સાંપરાવિક કમને બંધ કરે છે તથા જેઓ રાગદ્વેષથી મલીન થયેલા છે, તેઓ અનેક પ્રકારના કર્મોનું ઉપાર્જન (પ્રાપ્તિ) કરે છે. કેટલા " આ રીતે બાલવીર્યને બતાવીને ઉપસંહાર કરતાં કહે છે કે'एय सकम्मवीरिय” त्यादि शहाय--'एय-एतत्' मा 'बालाणं तु-बालानां तु' ज्ञानिया नु' 'सकम्म वीरिय पवेइयं-सकर्मवीर्यम् प्रवेदितम्' २१ पीय sa2. 'इत्तो-अतः' स्वे डिंथी पंडियाण-पंडितानाम्' उत्तम साधुमे। 'अकम्मवीरियं-अकर्मवीर्यम्' मम पीय 'मे-में' भारी पसिया 'सुणेह-श्रुणुव' शिष्य!! तमे साल For Private And Personal Use Only

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