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समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ६ उ.१ भगवतो महावीरस्य गुणवर्णनम् ४८५ प्रार्तित सर्वधर्मातिशायिनो धर्मस्य काश्यपगोत्रो भगवान् महावीरस्वामी नेतेव नेता सर्वजीवानां तादृशाऽनुत्तमधर्मे प्रवर्तनाद् भवतीति भावः ॥७॥ मूलम्-से पन्नयाँ अक्खयसागरे वा महोदही वावि अणंतपारे।
अणाइले वा अकसाई भिक्खू संकेव देवाहिवई जुइमं ॥८॥ छाया-स प्रज्ञयाऽक्षयसागर इव महोदधिरिवापि अनन्तपारः।
___ अनाविलो वा अपायी भिक्षुः, शक्र इव देवाधिपति र्युतिमान् ॥८॥ काश्यपगोत्रीय भगगन महावीर स्वामी हैं, क्योंकि वे समस्त जीवों, को उस अनुत्तम धर्म में प्रवृत्त करते हैं ॥७॥ 'से पन्नया' इत्यादि।
शब्दार्थ-से-सः' वह भगवान महावीर स्वामी 'सागरे वा-सागर इव' समुद्र के समान 'पन्नया-प्रज्ञया' बुद्धि से 'अक्खए-अक्षयः' अक्षय है 'महोदही वावि-महोदधिरिव' स्वयंभूरमण समुद्र के समान 'अणंतपारे-अनन्तपारः' अपार प्रज्ञा वाले हैं 'अणाइले वा-अनाविलोवा' जैसे समुद्र का जल निर्मल है उसी प्रकार भगवान् निर्मल प्रज्ञावाले है 'अकसाई-अकषायी' भगवान् कषायों से रहित हैं और 'मुक्के-मुक्तः' ज्ञानावरणीय आदि आठ प्रकार के कर्मों से रहित हैं 'सक्केव-शकइव' भगवान् इन्द्र के समान' देवाहिबई-देवाधिपतिः' देवताओं के अधिपति हैं 'जुहम-शुतिमान' तथा अत्यन्त तेजवाले हैं ॥८॥ કાશ્યપ ગોત્રીય મહાવીર સ્વામીને સર્વશ્રેષ્ઠ ગણવામાં આવે છે, કારણ કે તેઓ સમસ્ત જેને તે અનુપમ ધર્મમાં પ્રવૃત્ત કરે છે. છો
'से पन्नया' त्याह
शहाय-से-सः' ते पान महावीर स्वामी 'सागरे वा--सागर इव' समुद्र समान पन्नया-प्रज्ञया' मुद्धिथी 'अक्खए-अक्षय' ५क्षय 'महोदहीवावि-महोदधिरिव' स्वय भूरभार समुद्रना समान 'अणंतपारे-अनन्तपारः' अ५२ प्रज्ञा पाछे 'अणाइले वा-अनाविलो वा' रेभ समुद्रनु पनि छ त सारे 14 निभ प्रज्ञा छ 'अकसाई-अकषायी' बापान ४पाये थी २हित छे भने 'मुक्के-मुक्तः' ज्ञाना१२वीय पोरे 18 प्रारना था शहित छ सक्केव-शक इव' मावान् छन्द्रना समान 'देवाहिवई-देवाधिपतिः' पताना अधिपती छ 'जुईमं-द्युतिमान्' तथा मयत drain l
स०६१
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