________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-
समयार्थबोधिनी टीका प्र.श्रु. अ.७ ३.१ कुशीलवतां दोषनिरूपणम् ५५५: - अन्वयार्थः- (जाईपह) जातिपयं-एकेन्द्रियादिजातो. 'अणुपरिमाणे अनुपरिवर्तमानः-जन्ममरणं कुर्वाणः (स) सः जीवः (तसथावरेहि) प्रसस्थावरेषु समुत्पद्य (विणिघायमेति) विनिघातं विनाशमेति प्राप्नोति, (जाइजाई) जातिजातिम्-एकेन्द्रियादिषु अनेकशो जन्म गृहीत्वा (बहुकूरकम्मे वाले) बहुक्रफर्मा बालोऽज्ञानी (जं कुन्नइ तेण मिज्जइ) यत् प्राणातिपातं करोति तेन कर्मणा म्रियते-जन्ममरणं करोति ॥३॥ यह सूत्रकार दिखलाते हैं-'जाईपहं' इत्यादि।
शब्दार्थ-'जाईपहं-जातिपथम्' एकेन्द्रिय आदि जातियों में 'अणु. परिवट्टमाणे-अनुपरिवर्तमानः' जन्म मरण को प्राप्त करताहुआ 'से-स' वह जीव 'तस थावरेहि-त्रसस्थावरेषु' त्रस और स्थावर जीवों में उत्पन्न होकर 'विणिघायमेति-विनिघातमेति' नाशको प्राप्त होता है 'जाइ. जाई-जातिजातिम्' एकेन्द्रियादिकों में बार बार जन्म लेकर 'बहुकूरकम्मे बाले-पटुकारकर्मा बाल' बहुत क्रूर कर्म करनेवाला वह बाल-अज्ञानी: जीव 'ज कुव्वा तेण मिज्जइ-यत् करोति तेन म्रियते जो कर्म करता है उसीकर्म से जन्म मरण प्राप्त करता है॥३॥ ___ अन्वयार्थ-एकेन्द्रिय आदि जातियों में परिभ्रमण करता हुआ अर्थात् जन्म मरण करता हुआ वह जीव सस्थावर योनियों में उत्पन्न होकर घात को प्राप्त होता है। एक जाति से दूसरी जाति में જતાં તેને કેવી રીતે સંસાર ભ્રમણ કરે છે, તે સૂત્રકાર હવે બતાવે છેजाईपहं' त्या___-'जाईपह-जातिपथम्' मेन्द्रिय विगेरे गतियोमा 'अणुपरिवमाणे-अनुपरिवर्तमानः' म अने भ२ प्रास२वाय 'से-मः' ते 'तसथावरेहि-त्रसस्थावरेषु' उस मने स्था१२ वामपन्न यन. 'विणिपायमेति-विनिघातमेति' नाशने पास थाय छे. 'जाइजाई-जातिजातिम्' मेन्द्रिय विभा पार पा२ म. सन 'बहुक्रकम्मे बाले-बहूक्रूरकर्मा बालः' या १२ मा ३२वावावा ते मात-मज्ञानी १ ज कुबइ तेण मिज्जइ-यत् करोति न म्रियते' २ ४ ४२ छ, मेक था सन्म मरण पास रे छे ॥३॥
સૂત્રાર્થે–એકેન્દ્રિય આદિ જાતિમાં પરિભ્રમણ કરે છે એટલે કે જન્મ-મરણ કરતે કરતે તે જીવ ત્રસસ્થાવર નીઓમાં ઉત્પન્ન થઈને ઘાત પામતે રહે છે-કણાતે રહે છે. એક જાતિમાંથી બીજી જાતિમાં
For Private And Personal Use Only