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सू
पुनरप्याह सूत्रकारः- 'कुलाई' इत्यादि । मूलम् - कुलाई जे धावइ साउंगाई अधाति धम्मं उदराणु गिद्धे । अहाहु से आयरियाण सर्व ले जे लाएजा असणस्स हेॐ । २४| छाया - कुलानि यो धावति स्वादुकानि आख्याति धर्ममुदरानुगृद्धः ।
अथाहुः स आचार्याणां शतांशो य आलापयेदशनस्य हेतोः ||२४|| अन्वयार्थ:- (उदाराणु गिद्धे) उदरानुगृद्धः - उदरभरणव्यग्रः सन् (जे) यः पुरुषः ( साउगाई कुलाई घावइ) स्वादुकानि - स्वादुभोजनविशिष्टानि कुलानि - गृहाणि - धावति गच्छति (धम्मं आघाति) धर्म धर्मकथामाख्याति कथयति (से आयरियाम
सूत्रकार फिर कहते हैं- 'कुलाई' इत्यादि ।
शब्दार्थ -- 'उदाराणुगिद्धे - उदारानुगृद्धः' उदर पोषण में तत्पर 'जेघः' जो पुरुष 'साउगाई कुलाई घावह स्वादुकानि कुलानि धावति' स्वादिष्ट भोजन प्राप्त होनेवाले घरों में जाते हैं तथा वहां जाकर 'धम्मं आघाति-धर्म आख्याति' धर्मका कथन करते हैं 'से आयरियाण सयंसे - सः आचार्याणां शतांशः' वे आचार्यके शतांश भी नहीं हैं 'जे असणस्स हेऊ लावयेज्जा - यः अशनस्य हेतोः आलापयेत्' तथा जो भोजन के लोभ से अपने गुणों का वर्णन करता है वे भी आचार्यों के शतांश भी नहीं हैं ||२४|
अन्वयार्थ — जो उदरासक्त (पेट भरा) हो कर स्वादिष्ट भोजन वाले घरों में जाना है और वहाँ जाकर धर्मोपदेश करता है, वह साधु
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सूत्रार कुशीसोने अनुसक्षीने विशेष उथन रे - 'कुलाई' इत्याह-
श६ थ -- 'उदाराणु गिद्धे-उद रानुगृद्धः ' उह२ घोषशुभां तत्र 'जे-य:' ने पु३ष 'साउगाई' कुलाइ धात्रइ - स्वादुकानि कुलानि धग्वति' स्वाद्दिष्ट लोन प्राप्त. धवावाणा घशेषां भय हे तथा त्यांने 'धम्मं आघाति-धर्म आख्याति' धर्मनुं उधन रे छे. 'से आयरियाण वयंसे - सः आचार्याणां शतशः ' तेथे मायर्यांनी शतांश पशु नथी 'जे अम्लणस्सहेऊ लावयेज्जा-यः अशनस्य हेतोः आलापयेत्' तथा भेो लेोभनना बोलथी पोताना गुनु वासुंन पुरे छे, તેએ પશુ આચાર્યના શતાંશ પણ હાતા નથી. ।। ૨૪ ।।
સૂત્રા་—જે સાધુ ઉત્તર ભર (ભેાજન મેળવવાની લેવુપતાથી યુક્ત) થઇને સ્વાદિષ્ટ ભેજન મળે એવાં ધરામાં જાય છે અને ત્યાં જઈ એ ધમાં