Book Title: Sutrakritanga Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

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Page 661
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ८ उ. १ वीर्यस्वरूपनिरूपणम् ६४२ 'दीसति' दृश्यन्तेऽपदिश्पन्ने वा । तथा हि-अनेकपकारककर्मसु प्रयत्नं कुर्वाण मुल्लाहवाला दिसम्पानं मयं दृष्ट्वा वीर्यवानमित्ये । मादिश्यते । तया-भावरण कर्मणां क्ष वादनन्दल मोऽसमित्यादिश्यते, दृश्यते च इति । शियानानन्तरं श्री सुधर्मस्वामी जम्बूस्वामिस्मृतिशिडावर्गमुद्दिश्य कथयति-हे शुन्य ! काबि क बो मिति विमन्ति, केचनाऽकर्मएव वीजति प्रतिपादयनित । मन प्रकारेणी द्विषा विज्यते, आभ्यामेव भेदाभ्यां में अस्वी पारियाने इति ॥२॥ ____ इह पानीय कारो का चारा नौ बार मालादितम् । इदानीं कारणे कामोपचारादेव समादं धर्म वेनाऽपविशवाह-सूयकार:-'पमायं कम्ममायु' इत्यादि। मूछन्-मा कम्म मासु अमायं तहाऽवरं। तभावादेर्शओ शादि बालं पंडि में या॥३॥ छाया-मादं कर्म आहु रप्रसाद तथाऽपरम् । . तदाबादेशतो चापि बालं पण्डितमेव वा ॥३॥ भेदों से या भेदों में मनुष्य दिखाई देते हैं। जैसे अनेक प्रकार के कृत्यों में प्रयत्न करने वाले बल आदि से सम्पन्न पुरुष को देखकर 'यह वीर्यशा है ऐसा कहा जाता है और कर्मों का क्षय होने से 'यह अनन्त बल से सम्पन्न है। ऐसा कहा जाता है। शिष्य के प्रश्न के अनन्तर श्रीसुधर्मा स्वामी, जम्बू स्वामी आदि शिष्यवर्ग को लक्ष्य करके कहते हैं-हे सुवलो! कोई-कोई कर्म को ही वीर्य कहते हैं और कोई अकर्म को ही वीर्य कहते हैं । इस प्रकार वीर्य के दो भेद हो जाते हैं। इन्ही दो भेदों में सभी मनुष्यों का समावेश हो जाता है ॥२॥ રના કૃત્યમાં પ્રયત્ન કરવા વાળા બળ વગેરેથી યુક્ત પુરૂષને જોઈને “આ વીર્ય વાળે છે એ પ્રમાણે કહેવામાં આવે છે. અને કર્મોને ક્ષય થવાથી આ અનંત બળ વાળે છે.” એ પ્રમાણે કહેવામાં આવે છે. શિષ્ય પ્રશ્ન કર્યા પછી સુધર્મા સ્વામી, જંબૂ સ્વામી વિગેરે શિષ્ય વર્ગને ઉદેશીને કહે છે કે-હે સુત્ર ! કઈ કઈ કર્મને જ વીથ કહે છે. આ રીતે વીર્યના બે ભેદો થઈ જાય છે. આ બે ભેદમાં જ સધળા મેનુ બેને સમાવેશ થઈ જાય છે. આ सू० ८२ For Private And Personal Use Only

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