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पाखण्डी लोगो मार पियरं च
ए-अमगाते MAIN
समयार्थबोधिनी टीका प्र.श्रु. अ.७ उ.१ कुशोलवतां दोषनिरूपणम् पो
अन्वयार्थः-(जे मायरं पियरं च हिच्चा) यः पुरुषो मातरं जननीं पितरं च हित्वा परित्यज्य (समणमए) श्रमणवते-साधुदीक्षामादाय (अगणि समामिग्मा) अग्नि समारभेत-अग्निकायस्य समारम्भं कुर्यात् (जे आयसाते) यः आत्मसात स्वसुखाय (भूयाई हिंसइ) भूतानि हिनस्ति-विराधयति (से लोए) स लोक (कुसीलधम्मा) कुशीकधर्माऽस्तीति (अहाहुः) अथाहुः) तीर्थकरादयः कथयन्ति ।।६।। : सामान्य रूप से कुशीलजनों के विषय में कह कर अब सूत्रकार पाखण्डी लोगों के विषय में कहते हैं- 'जे माय पियरं' इत्यादि। .
शब्दार्थ-'जे मायरं पियरं च हिच्चा-यो मातरं पितरं च हित्वा जो पुरुष माता और पिताको छोडकर 'समणधए-श्रमगवते' श्रमणव्रत धारण करके 'अगणिं समारभिज्जा-अग्नि समारभेत' अग्निकायका आरंभ करते हैं तथा 'जे आयसाते- आत्मशाते' जो अपने सुख के लिये 'भूयाइं हिंसह-भूतानि हिनस्ति' प्राणियों की हिंसा करते। 'से लोए-स लोके' वे इस लोक में 'कुसीलधम्मे-कुशीला कुशील धर्म वाले है 'अहाहु-अथाहुः' ऐसा सर्वज्ञ पुरुषों ने कहा है ॥५॥ ___ अन्वयार्थ-जो पुरुष माता और पिता को त्याग करके श्रमणप्रते में उपस्थित हुआ अर्थात् दीक्षित हुमा है। फिर भी अग्नि का आरंभ समारंभ करता है, जो अपने सुख के लिए भूतों का घात करता है, वह पुरुष 'कुशीलधर्म' वाला कहलाता है ॥५॥
સામાન્ય રૂપે કુશીલ જનના વિષયમાં કહીને હવે સૂત્રકાર પાખંડી લેકેના વિષયમાં આ પ્રમાણે કહે છે
'जे मायर पियर' त्या:
शहाथ-'जे मायर पियरं च हिच्चा-ये मातर पितर' च हित्वा' २ ५३५ भाता भने पितान छोडसन 'समणव्वर-श्रमणव्रवे' श्रमणबत घार घरी 'अगणि समारभिजा-अग्नि समारभते' अभिय। भामरेछ, तथा जे
आयसाते-यः आत्मशात.' र पोताना सुम भाट 'भूयाई हिंसइ-भूतानि हिनस्ति' प्रालियोनी सा रे छे से लोए-सः लोके' ते भाभी 'कुसीलधम्मे-कुशीलधर्मा' शीद या छे. 'अहाहु-अथाहुः' मेश सपा પુરાએ કહ્યું છે. જે ૫ /
સૂત્રાર્થ-જે પુરુષ માતા, પિતા આદિને ત્યાગ કરીને શ્રવણુવ્રત-દીક્ષા અંગીકાર કરવા છતાં પણ અગ્નિને આરંભ સમારંભ કરે છે, જે પોતાના સુખને માટે ભૂતને (છ ) સંહાર કરે છે, તે પુરુષને “કેશલધમી કહેવાય છે. પા.
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