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जे छिंदती आयसुहं पंडुच्च,
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पांगभि पाणे बहुणं तिवाई ॥८॥
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छाया - हरितानि भूतानि विलंबकानि आहारदेहाच पृथक श्रितानि । छिनस्यात्मसुखं प्रतीस्य प्राणानां बहूनामतिपाती ॥८॥
इस कथन से अग्निकाय के विराधक तापसों का, पाक आदि कियाओं से निवृत न होनेवाले बौद्ध भिक्षुओं का तथा पार्श्वस्थ आदि का निराकरण किया। अब सूत्रकार वनस्पतिकाय की विराधना करने वालों के विषय में कहते हैं - 'हरियाणि' इत्यादि ।
शब्दार्थ - 'हरियाणि भूयाणि - हरितानि भूतानि हरित दूर्वाकुर आदि भी जीव हैं 'विलंबगाणि - विलम्बकानि' जीव के आकार से परिणमते हुवे वे भी 'पुढोसियाई - पृथक् श्रितानि' मूल स्कंध, शाखा और पत्र आदिके रूप से अलग अलग रहते हैं' 'जे आयसुहं पड्डु
- आत्मसुखं प्रतीत्य' जो पुरुष अपने सुखके लिये 'आहार देहा य आहारदेहा च' आहार करने के लिये और शरीर की पुष्टि के लिये 'छिंदती - छिनत्ति' इनका छेदन करके विनाश करता है 'पागभि पाणे बहुणं तिवाई - प्रागल्भ्यात् प्राणानां बहूनामतिपाती' वह घृष्ट पुरुषबहुत प्राणियों का नाश करता है ॥८॥
આ કથન દ્વારા અગ્નિકાયની વિરાધના કરનારા તાપસેા ન, રસાઈ રાંધવા આદિ ક્રિયાઓમાંથી નિવૃત્ત નહી' થનારા મૌદ્ધ ભિક્ષુઓના તથા પાર્શ્વસ્થા (શિથિલાચારીએ) આદિના મતનું ખડન કરવાંમાં આવ્યુ. હવે સૂત્રકાર વનસ્પતિકાયની વિરોધના કરનારાઓના વિષયમાં આ પ્રમાણે કહે છે -'farfor, scule
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शब्दार्थ - 'हरियाणि भूषाणि - हरितानि भूतानि' इति इर्षा बरे। विगेरे पशु ७१ छे. 'विलंबगाणि - विलम्बकानि वा अस्थी परिशुभता भेना तेथे 'पुढोसियाई - पृथक्षितानि' भूज, सुध, शाखा अने पत्र विगेरे ३ हा हा रखे छे. 'जे आयमुह पडुच्च ये आत्मसुखं प्रतीत्य' ने पु३ष पोताना शुभ भाटे 'आहारदेहा य - आहारदेहा च' महा२ ४२वा भाटे तथा शरीरनी पुष्टि भाटे 'छिदती - छिनत्ति' या वनस्पतियानु छेदन कुरीने तेनेो विनाश रे छे. 'पागभिपाणे बहूणं तिबाइ-प्रागल्भ्यात् प्राणानां बहुनामतिपाती' ते પૃષ્ટ પુરૂષ ઘણા પ્રાણિયાના વિનાશ કરે છે, ॥ ૮॥