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समयार्थषोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ५ उ. २ नारकीयवेदनानिरूपणम् ३७ मूलम्-अणासिया नाम महासियाला
पागन्भिगो तत्थ सया सकोगा। खेति तत्था बहुकूरैकम्मा, अदूरगा संकलियाहि बैद्धा ॥२०॥ छाया--आशिता नाम महाशालाः, गरिभणस्तत्र सदा सकोपाः ।
- खाद्यन्ते तत्स्थाः बहुराणिः, अदरमाः ,अलिकाभि बद्धाः॥२०॥
अन्वयार्थः ---(नस्थ) तत्र नरके (सया सकोवा) सदा सर्वकालं सकोपाः क्रोधयुक्ताः (अगासिया नाम) अशिताः बुभुक्षिताः (पागभिगो) प्रगत्मिनः धृताः जब उनके शरीर पर गाढ प्रहार किया जाता है तब वे अधोशिर होकर मुख से रुधिर वमन करते हुए भूमि पर जा पडते हैं ॥१९॥ 'अणामिया' इत्यादि।
शब्दार्थ-'तत्थ-तत्र' उस नरक में 'सया सकोवा-सदा सकोपा' सदा क्रोधित 'अणासिया नाम-अनशिता नाम' क्षुधातुर ऐसे तथा 'पागभिणो-प्रगल्भिन' धीट-भयरहित ऐसे 'महासियाला-महा. शृगाला। बडे बडे शृगाल रहते हैं वे गीदड बटुकूरकम्झा-बहुकर कर्माण' जन्मान्तर में पापकर्म किये हुए 'संकलियाहि-शृवलिकाभिः' जंजीर में 'यद्धा-बद्धाः' धे हुए 'अदूरगा-अदूरगा' निकट में रहे हुए 'तत्थातत्स्था' उस नरक में स्थित जीवों को 'खति-खाद्यन्ते' खण्ड खण्ड करके खा जाते हैं ॥२०॥ ___ अध्यार्थ-नरक में सदैव क्रुद्ध रहने वाले, सदैव भूखे एवं धीट निर्भय નાખે છે. જ્યારે તેમના શરીર પર કઠોર પ્રહાર પડે છે, ત્યારે તેઓ અધે સુખ હાલતમાં જમીન પર ફસડાઈ પડીને લેહીની ઉલ્ટીઓ કરે છે. છેલ્લા 'अणालिया' त्या
शहाथ--- 'सत्य-तत्र' ते नरमा 'स या सकोवा-सदा सकोपाः' सहा जोषित 'अणासिया नाम-अनशिता नाम' क्षुधातु२ सेवा तथा 'पगमिणो-प्रगल्मिनः' मयरहित १ (बीट) 'महासियाला-महाशृगालाः' भाटा मोटा शिया २ छे, ते शिय!' 'बहुकर कम्मा-बहुक्करकर्माणः' मान्तरमा ५४ रेसा 'संकलियाहिं-शृनलिकाभिः' ७२मां बद्धा-बद्धा.' मधेस। 'अदूरगा-अदूरगाः' नोटमा २सा 'तत्था-तत्स्थाः' ते २४मा स्थित ७वाने 'खजंति-खाद्यन्ते' ટુકડા ટુકડા કરીને ખાઈ જાય છે. રા
સૂત્રાર્થ–નરકમાં મહા ધીટ (શિયાળે) હોય છે. તેઓ ઘણાં જ
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