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समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. . ५ उ.२ नारकीयवेटनानिरूपणम् ४३१
अन्वयार्थः-(महाभिहतावे) म्ह भितापे-महादुःखरूपे । (अंजलिक्ख) अंतरिक्ष आकाशे (वेतालिए नाम) वैक्रियनामा (एगायते) एकायतः एकशिलादिघटितो दीर्घः (पत्रए) पर्वतः (तत्था) तत्स्थाः तत्र पर्वते वसन्तः (बहुकूपकम्मा) बहुक्रूरकर्माणो नैरयिकाः (सहस्साणं मुहुत्तगाणं) सहस्राणां मुहूर्त्तकाणां (1) परमधिकं कालं यावत् (हम्मंति) हन्यन्ते-पीडयन्ते इति ॥१७॥ 'बेतालिए' इत्यादि।
शब्दार्थ-'महाभितावे-महाभितापे' महान् दुःख से युक्त 'अंतलिक्खे-अंतरिक्षे' आकाश में 'वेतालिए नाम-वैक्रियो नाम' वैक्रिय नामका 'एगायते-एकायतः' एकशिला के द्वारा बनाया हुआ लम्बा 'पन्चए-पर्वतः' पर्वत है 'तत्था-तरस्थाः' उस पर्वत पर निवास करने वाले 'बहुकूरकम्मा-बहुकाकर्माणः' बहुत क्रूरकर्म किए हुए नारकि जीव 'सहस्साणं मुहुत्तगाणं-सहस्राणां मुहूर्तानाम्' हजारों मुहूर्तों से 'परं-परम्' अधिक काल तक 'हम्मंति-हन्यन्ते' मारे जाते हैं ॥१७॥ ___अन्वयार्थ-अत्यन्त सन्ताप उत्पन्न करने वाला वैक्रिय नामक एक पर्वत है । वह आकाश में है और एक शिला आदि का बना हुआ है। उस पर रहे हुए क्रूर कर्म करनेवाले नारक सहस्रों (हजारों) मुहूत्तों से भी अधिक काल तक पीड़ित किये जाते हैं ॥१७॥
'बेतालिए' त्या
शहा--'महामितावे-महाभितापे' महान् यी युक्त 'अंतलिक्खेअन्तरिक्षे' मा 'वेतालिए नाम-वैक्रियो नाम' छिय नामनी 'एगायतेएकायतः' में शिक्षा वा मनाa ain पब्बए-पर्वतः' पर्वत छ. 'तत्थातत्स्थाः ' ते ५ ६५२ निवास ४२वावाणा 'बहुकूरकम्मा-बहुक्रूरकर्माणः' मन
२७ ४२वाणा ना२80 'सहस्साणं मुहत्तगाणं-सहस्राणं मुहूर्तानाम्' गरे। भुत्तो था 'पर-परम्' माघि १७ सुधी 'हम्मंति-हन्यन्ते' भाषामा આવે છે. ૧૧
સૂત્ર.થેન્નારકોને ખૂબ જ સંતપ્ત કરનારે વક્રિય નામને એક પર્વત નરકભૂમિમાં આવેલ છે. તે આકાશમાં આવેલ છે અને એક જ શિલાને બને છે. તે વેકિય પર્વત પર ઉત્પન્ન થયેલા, કૂરકર્મા નારકેને હજારે મુહૂર્ત કરતાં પણ અધિક કાળપર્યન્ત પરમધાર્મિક અસુરે દ્વારા ખૂબ જ માર, પ્રહાર આદિ વ્યથા સહન કરવી પડે છે. આવા
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