________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
४०८
सूत्रकृतासूचे मूलम्-समूसियं नाम विधूमठाणं, जं सोयतत्ता कलणं थथति। अहोसिरं कट्ट विगत्तिऊणं, अयंव सत्थेहिं समोसवेंति ॥८॥ छाया-समुच्छ्रितं नाम विधूमस्थानं यन् शोकतप्ताः करुणं स्तनन्ति ।
अधःशिरः कृत्वा विकाऽय इव शस्त्रैः समवसरन्ति ॥८॥ अन्वयार्थः- (समूसियं) समुक्तिं (नाम) नाम-उच्चचितावत् (विधूमठाणं) विधूमस्थानं-धूमरहिताग्निस्थानं विद्यते 'ज' यत् स्थानम् पाप्य 'सोयतत्ता' शोककिये जाते हैं । अर्थात् वे जहाँ कहीं भी जाते हैं, वहीं उन पर विपत्तियों के पहाड गिरते हैं ॥७॥ 'समूमियं' इत्यादि।
शब्दार्थ-'समूमिय-समुच्छ्रितम्' ऊँची चिता के समान 'विधम. ठाणं-विधूमस्थानम्' धूमरहित अग्नि का एक स्थान है 'ज-यत्' जिस स्थान को प्राप्त करके 'सोपतत्ता-शोकतप्ताः' शोक से दुःखित नारकि जीव 'कलुणं-करुणम्' करुणाजनक 'थणंति-स्तनन्ति' रुदन करते हैं 'अहोसिरं कटूटु-अधः शिरः कृत्वा' नरकपाल नारकि जीव के शिर को नीचा करके 'वित्तिकणं-विकत्ये' तथा उसकी देह को काटकर 'अयंव सस्थेहि-अयोवत् शस्त्रः' लोह के शस्त्र से 'समोसवेति-समवसरन्ति' खण्ड खण्ड करके काटते हैं ॥८॥
अन्वयार्थ--ऊंची चिता के सदृश धूमरहित अग्नि को एक स्थान है, जिसे प्राप्त करके शोक से तप्त नारक जीव करुण आक्रोश करते हैं। તે પણ દુઃખ તેમને કે છોડતું નથી. તેમના ઉપર જાણે કે દુખના પહાડો જ તૂટી પડે છે છા
'समूसिय' Unile . शार्थ-'समूसियं-समुच्छ्रितम्' यी यिताना समान 'विधूमठाणंविधूमस्थानम्' धूमा। ११२ भनिनु मे स्थान छ. 'ज- यत्' २ स्थानने प्राप्त शत 'सोयतत्ता-शोकतप्ताः' थी मित ना १ 'कलुणंकरुणम्' ४३ 'थणंति-स्तनन्ति' ३६. रे छ 'अहोसिर कटु-अधः शिरः कृत्वा' २५॥ नाना भायाने नाय उरीने 'विगत्तिऊणंविकर्त्य' तथा तेना ने पीने 'अयं वसत्थेहि-अयोवतू शस्त्रैः' सोमना Anil 'समोसवेंति-समवसरन्ति' टुडे टु ४रीन पे छे. ॥८॥
સૂત્રાર્થ–એક ઊંચી ચિતાના આકારનું, ધુમાડા વિનાની અગ્નિથી યુક્ત એક સ્થાન હોય છે. જયારે પરમધામિક નારકેને તે ચિતામાં છું કે
For Private And Personal Use Only