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सूत्रकृताङ्गसूत्रे अन्वयार्थ:-(जई) यदि (केसिया) केशिकया-केशाः विद्यन्ते यस्याः सा तथा तया (मए) मया (इत्पीए) स्त्रिया सह (भिक्खू) हे भिक्षो ! (णो विहरे) नो विहरेः यदि विहारं न करिष्यसि तदा (केसाण विहं लुचिस्स) केशानप्यहं लुचिष्यामि त्वत्समागकांक्षिणी (मए) मगा रहितं (अन्नत्थ) अन्यत्र (न चरिजासि) न चरेमा विहाय नान्यत्र गच्छ इति ॥३॥
टीका--'भिवरलो' हे भिक्षो ! 'जइ' यदि के सिया' केशिकथा केशाः विधन्ते यस्याः सा केशिका स्त्री तया, केशमियाः स्त्रियो भवन्ति । 'मए' मया 'इत्थीए' स्त्रिया 'णो विहरे' नो विहरेस्त्वम् तदा 'केसाण विहं लुचिस्स' केशा.
शब्दार्थ-'जइ-यदि' जो 'केसिगा-केशिकया' केशवाली 'मएमया' मुझ-'इत्थीए-स्त्रिया' स्त्री के साथ 'भिक्खू-भिक्षों-हे साधोः तुम 'जो विहरे-नो विहरे नहीं रह सकते तो 'हं-अहं' में इसी जगह 'केसाण लुचिस्स के शान लुचिच्यामि' केशों को भी लोच लूंगी 'मए-मया' मेरे विना 'अन्नत्य-अन्यत्र किसी दूसरे स्थान पर 'न चरिज्जासि-न चरे' न जाओ ॥ ३॥
अन्वयार्थ-यदि मुझ केशवाली के साथ हे भिक्षो ! नहीं रहोगे तो मैं अपने केशों को भी नोच डालूंगी। मुझे छोड़कर अन्यत्र कहीं मत जाना ॥३॥
टीकार्थ--स्त्रियों को केश प्रिय होते हैं अतएव कोई केशवाली स्त्री साधु से कहती है-हे भिक्षो! यदि शुश केशोंवाली के साथ तुम नहीं रहोगे तो मैं इसी स्थान पर और इसी समय अपने केशों को
शदा'-'जय-यदि' रे सिया-शिकया' Aqivी 'इत्थीए-स्त्रिया' श्री सेवा 'मए--मया' भारी माथे 'भिकबू-मिझो उसयो ! 'यो विहरे-नो विहरे' न २७ शताय तो 'हं-अहम्' हुँ मा४ स्यणे 'केसाण वि लुचि
सं-केशानपि लुचिष्यामि'ईशान। ५९ साय उरीश. 'मए-मया' मा विना 'अन्नत्य-अन्यत्र' 15 भी थान ५२ 'न चरिजासि-न चरेः' मे नहि।
સૂત્રાર્થ હે ભિક્ષે! સુંદર કેશવાળી મારી સાથે તમે વિચરે, જે તમે મારી સાથે વિચરણ નહીં કરે, તે હું મારા સુંદર વાળીને મારે હાથે જ ખેંચી કાઢીશ. માટે મારો ત્યાગ કરીને બીજે વિચરવાને ખ્યાલ જ છોડી દે છે ૩
ટીકાર્થ_સ્ત્રિઓ તેમના સુંદર વાળને કારણે વધારે સુંદર લાગતી હોય છે. તેથી સાધુમાં આસક્ત થયેલી કેાઈ સકેશી (કેશયુક્ત) સ્ત્રી સાધુને એવી ધમકી પણ આપે છે કે-હે મુને ! જે તમે કેશવાળી એવી મારી સાથે નહીં
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