________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सूत्रकृताङ्गसूत्रे दुःखविशेषान् उम्पादयन्ते । नरकपालास्तान नारकजीवान् पीडयन्ति, यतः कृतकर्मणां । कदाचिदपि फलोपभोगमन्तरा न ततो विमुक्ता भवन्तीति भावः ॥१९॥ मूलमू-ते हम्ममाणा णरगे पंडंति पुन्ने दुरुवस्स महाभितावे। ते तत्थ चिंति दुरूर्वभक्खी तुटूंति कम्मोवगया किमीहि।२०। छाया-ते हन्यमाना नरके पतन्ति पूर्ण दूरूपस्य महामितापे ।
ते तत्र तिष्ठति दुरूपभक्षिणः त्रुटयन्ते कर्मोपगताः कृमिमिः ॥२०॥ देकर उसी प्रकार के उनके द्वारा अन्य प्राणियों को दिये गये दंड की याद दिलाते हैं । क्योंकि अपने किये कर्मों का फल भोगे विना उनसे छुटकारा नहीं पाते हैं ।।१९।।
शब्दार्थ--'हम्ममाणा ते-हन्यमानास्ते' परमाधार्मिकों के द्वारा मारे जाते वे नारकि जीव 'महाभिनावे-महाभितापे महान् कष्ट देने वाले 'दुरूवस्त पुणे-दूरूपेण पूर्णे' विष्टा और मूत्र से पूर्ण 'नरएनरके' दूसरे नरक में 'पडंनि--पतन्ति' गिरते हैं 'ते तत्थ-ते तत्र' वे वहां 'दुरूवभक्खी-दूरूपभक्षिणा' विष्टा, मूत्र आदि का भक्षण करते हुए 'चिट्ठति-तिष्ठन्ति' चिरकाल तक निवास करते हैं 'कम्मोवगयाकोपगता:' स्वकृत कर्म के वशीभूत होकर 'किमीहि-कृमिभि:' कीड़ों के द्वारा 'तुति-त्रुड्यन्ते' पीड़ित होते हैं ॥२०॥ સમરણ કરાવે છે. તેઓ તેમને જે પ્રકારને દંડ દે છે, એ જ પ્રકારનો દંડ તેમણે (નારકે એ) પૂર્વજન્મમાં અન્ય જીવોને દીધું હતું, એ વાતનું તેઓ તેમને સ્મરણ કરાવે છે, કેમકે નારક છે તેમણે પૂર્વભવમાં કરેલાં કર્મોનું ફળ ભેગવ્યા વિના નરકનાં દુઃખમાંથી છુટકારે પામી શકતા નથી. ૧લા
Avti -'हम्ममाणा ते-हन्यमाना' ५२माधामिन A२भा२पामा भारत ते ना२४ । 'महाभितावे-महाभितापे' महान् ४५ हेवाण 'दुरूवरस पुण्णे-दूरूपेण पूर्णे' ६ भने भूत्रथी पू: 'नरा-नरके' भात न२४मा 'पडंति-पतन्ति' ५३ छे 'ते तस्य-वे तत्र' ते ५i 'दुरूवभक्खी -दुरूपभक्षिणः' विटा, भूत्र विगेरेनु सक्षY ४२ता 'चिटुंति-तिष्ठन्तिः' ail 100 सुधा निवास 3रे छ. 'कम्मोवगया-कर्मोपगता' पढन भनी पीभूत ने 'किमिहि-कृमिभिः' मे। बा२। 'तुटुंति-श्रुटयन्ते' पात थाय छे. ॥२०॥
For Private And Personal Use Only