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further. थु. अ. ३ ल. २ उपसर्गजन्यतपः संयम विराधनानि० ९५
अल्पसत्वो जीव इत्थमपि विकल्पयति, तदिह सूत्रकारो दर्शयति 'को जाण' इत्यादि ।
२
मूलम् - को जानइ विऊवातं इत्थीओ उदगाउ वा ।
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aisin aratni णो अस्थि पकप्पियं ॥ ४ ॥
ण
छाया - को जानाति व्यापातं स्त्रीतो उदकादना ।
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नोद्यमाना मक्ष्यामो न नोऽस्ति मकल्पितम् ॥ ४॥
अन्वयार्थः -- (इत्थी भो) स्त्रीतः (उदगाउवा) उदकात् वा (विवा) व्यापात संयमजीवितात् भ्रंशं ( को जागर) को जानाति (नो) नः अस्माकम् (पकनियं)
अल्पसत्य जीव ऐसा भी विचार करता है यह दिखलाते हुए सूत्र - कार कहते हैं-' को जाणई' इत्यादि ।
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शब्दार्थ - 'इथिओ - स्त्रीतः' स्त्री से 'उदगाउ बा - उदकात्वा' अथवा उदक नाम कच्चे जल से 'विऊवातं व्यापातम् ' मेरा संयम भ्रष्ट हो जायगा 'को जागइ - को जानाति' यह कौन जानता है ? 'णो-नो' मेरे पास 'पकप्पियं प्रकल्पितम्' पहले का उपार्जित द्रव्य भी 'ण अस्थिनास्ति' नही है इसलिये 'चेइज्जंता-नोद्यमानः' किसी के पूछने पर हम हस्तशिक्षा और धनुर्वेद आदि को 'पक्खामो प्रवक्ष्यामः' बतावे गे । ४ ॥
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अन्वयार्थ - - कौन जाने स्त्री या जल के निमित्त से संघम से भ्रष्ट होना पडे ? पहले उपार्जन किया हुआ द्रव्य है नहीं । अतः दूसरों के पूछने पर धनुर्विद्या आदि का उपदेश करेंगे || ४ |
તે અપસત્ત્વ કાયર સધુ કેવા કેવા વિચાર કરે છે, તે ત્રકાર હવે २४८ ४रे छे - ' को जाणइ' त्याहि
शब्दार्थ - - ' इत्थिओ - स्त्रीतः ' स्त्रीथी 'उदगाउमा - उदकात्वा' अथवा ७६४ नाम अया पाणीथी 'विकात - व्यापातम् ' भारी संयम अष्ट यह नशे 'को जाणइ को जानाति सा है लगी राडे हे ? 'णो-नो' भारी पासे 'पकप्पियं - प्रकल्पितम्' पदानु उति धन पशु 'ण अस्थि - नास्ति' नथी भेटला भाटे 'चेइज्जता - नोद्यमानाः' डोईना पूछवाथी अभे इस्तशिक्षा भने धनुर्वेह वगेरेने 'पवक्खामो - प्रवक्ष्यामः ' तावीशु ॥४॥
સૂત્રા-કેને ખબર છે કે શ્રી અથવા જલ દિને કારણે સયમના માગેથી કયાર ભ્રષ્ટ થવું પડશે! પહેલાં ઉપાર્જન કરેલુ' દ્રવ્ય તેા છે નહી,
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