________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
समार्थबोधिनी टीका प्र. शु. अ. ४ उ. १ स्त्रीपरीषहनिरूपणम्
ર
मूलम् - नो तासु क्खु संधेजी नौवि य साहस समभिजाणे । सहियां विहरेजा एवमेप्पा सुरक्खिंओ होई ॥५॥ छाया--न तासु चक्षुः संदध्यात् नापि च साहसं समभिजानीयात् । न सहितोपि विहरेत् एत्रमात्मा सुरक्षितो भवति ||५||
अन्वयार्थः - ( तासु ) तासु स्त्रीषु ( चक्खू ) चक्षुर्नेत्रं (नो) न ( संधेज्जा) संदध्यात् =न संयोजयेत् (नोचि य) नापि च ( साहसं समभिजाणे) साहसं समभिजानीयात् - साहसमकार्य करणं तत्पार्थनया प्रतिपद्येत नैव (सहियं त्रि) सहितोपि - तया ( णो विहरेज्ज () नो विहरेत्=यावाद्यामान्तरम् ( एवं ) एवमुपरोक्तप्रकारेण (अप्पा) आत्मा - स्वकीयः (सुरक्खियो होइ) सुरक्षितो भवति-असंयमेभ्य इति ॥५॥
पुरुष को चूम लेती है। अतएव जो अपना हित चाहता है उसे दूर से ही स्त्रियों का त्याग कर देना उचित है || ४ ||
शब्दार्थ - 'तासु तासु' उन स्त्रियों पर 'चक्खू चक्षुः' आंख 'नोसंघेज्जा- न संदध्यात्' न लगाये 'नो वि य-नापि च' तथा उनके साथ 'साहसं समभिजाणे - साहसं समभिजानीयात्' कुकर्म करने के लिये भी संमति न देवें' 'सहियं वि-सहितोऽपि उनके साथ 'णो विहरेज्जा-तो विहरेत्' ग्राम आदि जाने के लिये बिहार न करे 'एवं एवम्' इस प्रकार 'अप्पा - आत्मा' साधु का आत्मा ' सुरक्खियो होह - सुरक्षितो भवति' असंयम से सुरक्षित रहता है | ५||
अन्वयार्थ - साधु स्त्रियों पर दृष्टि न डाले या उनके नेत्र से अपने नेत्र न मिलावे न उसके कहने पर कोई अकार्य करे न उसके साथ बिहार करे । इसी प्रकार से आत्मा सुरक्षित होता है ||५||
દ્વારા પુરૂષને પેાતાના પાશમાં ફસાવીને અનુરક્ત અનેલા તે પુરૂષને ચૂસી લે છે-તેના શીલનુ` સ્ખલન કરાવે છે. તેથી જે કેાઇ પુરૂષ પેાતાનું હિત ચાહતા હાય તેણે સ્રીબેાથી દૂર જ રહેવું જોઇએ. ૫૪મા
शब्दार्थ - ' तासु तासु' से खियो पर 'चक्खू - चक्षुः' मां 'नो संघेज्जा -न संदध्यात् सगावे नहीं 'नो वि य-नापि च' तथा तेजीनी साथै 'साहसं सम भिजाणे - बाइस समभिजानीयात् मानी संभती पशु न याचे 'सहिय वि- सहितोऽपि तेलीनी साथै 'णो त्रिइरेज्जा-नो विहरेत्' नाम विगेरे ना भाटे विहार नश्ये. 'एवं - एवम्' आ रीते 'अप्पा - आत्मा' साधुन आत्मा 'सुरक्खियो होई - सुरक्षितो भवति' असंयमयी सुरक्षित रहे छे. या
r
For Private And Personal Use Only