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सूत्रकृताङ्गसूत्रे एतदुत्तरं सूत्रकारः प्राह--'तत्थ मंदा' इत्यादि । मूलम्-तस्थ मंदा विसीयंति वाहच्छिन्ना व गंदभा। . पि ओ परिसंप्पंति पिट्सप्पी य संभमे ॥५॥ छाया--तत्र मन्दा विषीदन्ति वाहच्छिन्ना इव गर्दभः ।
पृष्ठतः परिसर्पन्ति पृष्ठसपी च संभ्रमे ॥५॥ अन्वयार्थः--(तत्थ) तत्र-तस्मिन् कुश्रुन्युपसर्गे (मंदा) मन्दाः बालाः (वाहच्छिन्ना) वाहच्छिन्नाः भाराक्रान्ताः (गद्दभाव) गर्दभाइच (विसीयंति) विषीदन्ति: संयमपालने दुःखमनुभवन्ति (संभमे) संभ्रमे अग्न्यादिदाई (पिट्ठसप्पी) पृष्ठस
इसके अनन्तर सूत्रकार कहते हैं--'तत्थ मंदा' इत्यादि ।
शब्दार्थ-'तस्थ-तत्र' उसकुश्रुतिका उपसर्ग होने पर 'मंदा-मन्दाः' अज्ञानी पुरुष 'वाहच्छिन्ना-वाहच्छिन्नाः' भारसे पीडित 'गदभावगर्दभा इव' गदहे के जैसा 'विसीयंति-विषीदन्ति' संयम पालन करने में दुःख का अनुभव करते हैं 'संभमे-संभ्रमे' जैसे अग्नि आदिका उप. द्रव होने पर 'पिट्ठसप्पी-पृष्ठसर्पिण' लकडे की सहायतासे चलनेवाला हाथ पैर रहित पुरुष 'पिट्टो-पृष्ठतः' भागनेवाले पुरुषों के पीछे पीछे 'परिसप्पंति-परिसपैन्ति' चलता है उसी प्रकार ये अज्ञानी जन संयम पालने में सबसे पीछे ही हो जाते हैं ॥५॥ ____ अन्वयार्थ--कुशास्त्र का उपसर्ग होने पर अज्ञानी साधु उसी प्रकार संयम पालन में दुःख का अनुभव करते हैं, जिस प्रकार भारा
त्या२ मा सूत्र४२ ४३ छ -'तत्थ मंदा' इत्याहि--
शहाथ-'तत्थ-तत्र' ते श्रितिन। ७५स थाय त्यारे 'मंदा-मन्दाः' मज्ञानी ५३१ 'वाहच्छिन्ना-वाहच्छिन्नाः' माथी पीडित 'गद्धमा व-गर्दभा इव' गधेडानी नेम 'विसीयंति-विषीदन्ति' संयम पालन ४२वामां मना मनु११ ४३ . 'सभमे-संभ्रमे' २वी रीत मन परेन। ७५द्रय थाय त्यारे 'पिट्रसपी-पृष्ठसर्पिणः' १४ानी सहायताथी यसवावाणे। 12, ५१ । ५३५ ‘पिटू ओ-पृष्ठतः' भावावा॥ ५३योनी ५७॥ ५४१ ‘परिसपंति-परिसर्पन्ति' या छे ते मारे ! अज्ञानी माणुसे। सयम पालन ४२वामा બધાથી પાછળ જ થઈ જાય છે. પા
સુત્રાર્થ–જેવી રીતે ભારનું વહન કરવાને અસમર્થ ગર્દભ વિષાદને અનુભવ કરે છે, અથવા જેવી રીતે ચાલવાને અસમર્થ પુરુષ અગ્નિને ભય
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