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समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ४ उ. १ स्त्रीपरीषहनिरूपणम् २०३ छाया-मूक्ष्मेण तं परिक्रम्य छन्नपदेन स्त्रियो मन्दाः ।
आयमपि ता जानंति यथा श्लिष्यन्ति भिक्षव एके ॥२॥ अन्वयार्थ:--(मंदा इत्यिो ) मन्दास्त्रिया=कामोद्रेकविधायितया विवेकवि. कलाः (तं परिक्कम्म) तं साधु परिक्रम्य तत् समीयमागत्य (छन्नपएण) छन्नपदेन कपटजालेन तं भ्रंशयन्ति (ता) ता:-स्त्रियः (उन्नायपि) उपायमपि (जाणंसु) जानंति (जहा एगे भिक्खुणो) यथा एके भिक्षा-साधवः (लिस्संति) श्लिष्यन्ति तथाविधकर्मोदयात् तासु संगमुपयान्तीति ॥२॥ ___ इस प्रकार के मनोभावों में स्थित साधु के समक्ष विवेकहीन स्त्री जनों के सम्पर्क से जो परिस्थिति उत्पन्न होती है, उसे सूत्रकार दिख. लाते हैं-'सुहुमेणं तं' इत्यादि । __ शब्दार्थ-'मंदा इस्थि मो-मन्दा स्त्रियः' अविवेकिनी स्त्रियां 'मुष्टुमेणं सूक्ष्मेण' कपटसे 'तं परिकम्म-तं परिक्रम्ब' साधुके पास आकर 'छन्नपएण-छन्नपदेन' कपटजालसे अथवा गूढार्थ शब्द से भ्रष्ट करने का प्रयत्न करती है 'ता-ताः' वे स्त्रियाँ 'उन्वायंपि-उपायमपि' उपाय भी जाणति-जानन्ति' जानती है 'जहा एगे भिक्खुणो-यथा एके भिक्षषा' जिससे कोई साधु 'लिस्संति-श्लिष्यन्ति' उनके साथ संग करते हैं ॥२॥ ____ अन्वयार्थ--कामोद्रेक उत्पन्न करने के कारण विवेकहीन स्त्रियाँ उस साधु के समीप आकर और कपट का जाल बिछाकर उसे भ्रष्ट करती है । वे उपाय को भी जानती हैं और समझती हैं कि कोई कोई
આ પ્રકારના સંક૯પપૂર્વક સાધુપર્યાય સ્વીકારનાર સાધુની સાથે વિવેક હીન સ્ત્રીઓને સંપર્ક થવાથી જે પરિસ્થિતિ પેદા થાય છે, તેનું સૂત્રકાર वे नि३५९५ ४२ छ.-'सुटुमेणं तं' त्या
शा-'मंदा इथिओ-गन्दा स्त्रियः' अविवाणी स्त्रिया 'सुहुमेणं-सूक्ष्मेण' ४५४थी 'तं परिका-तं परिक्रम्य' साधुनी पासे मापीने 'छन्नपएण- छम्नपदेन' કપટ જાળથી અથવા ગૂઢ અર્થવાળા શબ્દથી સાધુને ભ્રષ્ટ કરવાનો પ્રયત્ન કરે छे. 'ता-ताः' ते लियो ‘उन्यायषि-उपायमपि' पाय ५५ 'जाणंति-जानन्ति' नये छ. 'जहा एगे भिक्खुगो-यथा एके भिक्षा माथी / साधु 'लिस्संति-श्लिष्यन्ति' तनी साथै स ४0 से . ॥२॥
સૂત્રાર્થ_વિવેકહીને સ્ત્રીઓ તે સાધુની પાસે આવીને, કપટજાળ બિછાવીને કામે ઉત્પન્ન કરનારી પિતાની ચેષ્ટાઓ દ્વારા તે સાધુને સંયમ ભ્રષ્ટ કરે છે. તેઓ તેને ફસાવવાની યુક્તિઓ જાણતી હોય છે અને સમજતી
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