SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org further. थु. अ. ३ ल. २ उपसर्गजन्यतपः संयम विराधनानि० ९५ अल्पसत्वो जीव इत्थमपि विकल्पयति, तदिह सूत्रकारो दर्शयति 'को जाण' इत्यादि । २ मूलम् - को जानइ विऊवातं इत्थीओ उदगाउ वा । 99 ७ aisin aratni णो अस्थि पकप्पियं ॥ ४ ॥ ण छाया - को जानाति व्यापातं स्त्रीतो उदकादना । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नोद्यमाना मक्ष्यामो न नोऽस्ति मकल्पितम् ॥ ४॥ अन्वयार्थः -- (इत्थी भो) स्त्रीतः (उदगाउवा) उदकात् वा (विवा) व्यापात संयमजीवितात् भ्रंशं ( को जागर) को जानाति (नो) नः अस्माकम् (पकनियं) अल्पसत्य जीव ऐसा भी विचार करता है यह दिखलाते हुए सूत्र - कार कहते हैं-' को जाणई' इत्यादि । - शब्दार्थ - 'इथिओ - स्त्रीतः' स्त्री से 'उदगाउ बा - उदकात्वा' अथवा उदक नाम कच्चे जल से 'विऊवातं व्यापातम् ' मेरा संयम भ्रष्ट हो जायगा 'को जागइ - को जानाति' यह कौन जानता है ? 'णो-नो' मेरे पास 'पकप्पियं प्रकल्पितम्' पहले का उपार्जित द्रव्य भी 'ण अस्थिनास्ति' नही है इसलिये 'चेइज्जंता-नोद्यमानः' किसी के पूछने पर हम हस्तशिक्षा और धनुर्वेद आदि को 'पक्खामो प्रवक्ष्यामः' बतावे गे । ४ ॥ - अन्वयार्थ - - कौन जाने स्त्री या जल के निमित्त से संघम से भ्रष्ट होना पडे ? पहले उपार्जन किया हुआ द्रव्य है नहीं । अतः दूसरों के पूछने पर धनुर्विद्या आदि का उपदेश करेंगे || ४ | તે અપસત્ત્વ કાયર સધુ કેવા કેવા વિચાર કરે છે, તે ત્રકાર હવે २४८ ४रे छे - ' को जाणइ' त्याहि शब्दार्थ - - ' इत्थिओ - स्त्रीतः ' स्त्रीथी 'उदगाउमा - उदकात्वा' अथवा ७६४ नाम अया पाणीथी 'विकात - व्यापातम् ' भारी संयम अष्ट यह नशे 'को जाणइ को जानाति सा है लगी राडे हे ? 'णो-नो' भारी पासे 'पकप्पियं - प्रकल्पितम्' पदानु उति धन पशु 'ण अस्थि - नास्ति' नथी भेटला भाटे 'चेइज्जता - नोद्यमानाः' डोईना पूछवाथी अभे इस्तशिक्षा भने धनुर्वेह वगेरेने 'पवक्खामो - प्रवक्ष्यामः ' तावीशु ॥४॥ સૂત્રા-કેને ખબર છે કે શ્રી અથવા જલ દિને કારણે સયમના માગેથી કયાર ભ્રષ્ટ થવું પડશે! પહેલાં ઉપાર્જન કરેલુ' દ્રવ્ય તેા છે નહી, For Private And Personal Use Only
SR No.020779
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages729
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy