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समयार्थबोधिनी टीका प्र.श्रु. अ.३ उ.३ उपसर्गजन्यतपःसंयमविराधनानि० १०५ मूलम्-तमेगे परिभातति भिवयं साहजीविणं।
जे एवं परिभासंति अंतएँ ते समाहिएं ॥८॥ छाया--तप्रेके परिभाषन्ते भिक्षुकं साधुजीविनम् ।
य एवं परिभाषन्ते अन्तके ते समाधेः॥८॥ अन्वयार्थः---(साहुजीविणं) साधुजीविनम् उत्तमाचरेण जीवन्तं (तं) तम् (भिक्खुयं) भिक्षुकं (एगे) एके-केचन (परिभासंति) परिभाषन्ते आक्षेपवचनं कथयन्ति (जे एवं परिमासंति) ये एवं परिभाषन्ते (ते) ते (समाहिए) समाधे समभावतः (अंतए) अंके-दुर वसन्तीति ।८॥
टीका--'साहुजीविण' साधुनीविनम् साधुः सम्यक परोपकारकरणादिरूपमाचरणं यस्य स साधु नीयो तं साधु जीविनम् । 'त' अत्युत्तमजीविनम् 'भिक्खूर्य'
शब्दार्थ--'साहुजीयणं-साधुजीविनम्' उत्तम प्रकार के आचार से जीवन निर्वाह करने वाले 'तं-तम्' उस 'भिक्खु-भिक्षुकम्' साधु के विषय में 'एगे-एके' कोई अन्य दर्शनवाले 'परिभासंति-परिभाषन्ते'
आगे कहे जाने वाले आक्षेप वचन कहते हैं 'जे एवं परिभासंति-ये एवं परिभाषन्ते' परन्तु जो इस प्रकार के आक्षेपवचन कहते हैं 'ते-ते' वे पुरुष 'समाहिए-समाधेः' समभाव से 'अंतए-अन्तिके' दूर ही हैं॥८॥ ____ अन्वयार्थ -साधु जीवन जीने वाले उस भिक्षुक के प्रति कोई भाक्षेपवचनों का प्रयोग करते हैं । जो ऐसा करते है वे समाधि से दूर ही रहते हैं ॥८॥
टीकार्थ-जो साधु जीवी से है अर्थात् जो परोपकार आदि रूप सम्यक् आचरण करता है, ऐसे उत्तम जीवन वाले भिक्षु पर भी कोई
Avat--'साहुजीविणं-साधुजीविनम्' उत्तम न मायारथी - नि: ४२१:१॥ 'त-तम्' ते 'भिक्खू-भिक्षुकम्' साधुना विषयमा 'एगे-एके' 5 भात शनणा 'परिभासति-परिभाषन्ते' मा अपामा भावना२ मा२५ वय ४९ छ, 'जे एवं परिभासंति-ये एवं परिभाषन्ते' २॥ २ना मा५ पयन ४ छ 'ते-ते' ते ५३५ 'समाहिए-समाधेः' समसाथी 'अंतए-अन्तके' ६२ ॥ छ. ॥८
સૂત્રાર્થ–સાધુજીવન જીવનારા તે સાધુને માટે કઈ કોઈ માણસે આક્ષેપ વચનને પ્રયોગ કરે છે. એવાં લેકે સમાધિથી દૂર જ રહે છે. ૮
ટીકા_જેઓ સાધુજીવી છે એટલે કે સાધુના આચારોનું પાલન કરનારા છે, પરોપકાર આદિ રૂપ સમ્યક્ આચરણથી જેઓ યુક્ત છે, એવા
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