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________________ Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयार्थबोधिनी टीका प्र.श्रु. अ.३ उ.३ उपसर्गजन्यतपःसंयमविराधनानि० १०५ मूलम्-तमेगे परिभातति भिवयं साहजीविणं। जे एवं परिभासंति अंतएँ ते समाहिएं ॥८॥ छाया--तप्रेके परिभाषन्ते भिक्षुकं साधुजीविनम् । य एवं परिभाषन्ते अन्तके ते समाधेः॥८॥ अन्वयार्थः---(साहुजीविणं) साधुजीविनम् उत्तमाचरेण जीवन्तं (तं) तम् (भिक्खुयं) भिक्षुकं (एगे) एके-केचन (परिभासंति) परिभाषन्ते आक्षेपवचनं कथयन्ति (जे एवं परिमासंति) ये एवं परिभाषन्ते (ते) ते (समाहिए) समाधे समभावतः (अंतए) अंके-दुर वसन्तीति ।८॥ टीका--'साहुजीविण' साधुनीविनम् साधुः सम्यक परोपकारकरणादिरूपमाचरणं यस्य स साधु नीयो तं साधु जीविनम् । 'त' अत्युत्तमजीविनम् 'भिक्खूर्य' शब्दार्थ--'साहुजीयणं-साधुजीविनम्' उत्तम प्रकार के आचार से जीवन निर्वाह करने वाले 'तं-तम्' उस 'भिक्खु-भिक्षुकम्' साधु के विषय में 'एगे-एके' कोई अन्य दर्शनवाले 'परिभासंति-परिभाषन्ते' आगे कहे जाने वाले आक्षेप वचन कहते हैं 'जे एवं परिभासंति-ये एवं परिभाषन्ते' परन्तु जो इस प्रकार के आक्षेपवचन कहते हैं 'ते-ते' वे पुरुष 'समाहिए-समाधेः' समभाव से 'अंतए-अन्तिके' दूर ही हैं॥८॥ ____ अन्वयार्थ -साधु जीवन जीने वाले उस भिक्षुक के प्रति कोई भाक्षेपवचनों का प्रयोग करते हैं । जो ऐसा करते है वे समाधि से दूर ही रहते हैं ॥८॥ टीकार्थ-जो साधु जीवी से है अर्थात् जो परोपकार आदि रूप सम्यक् आचरण करता है, ऐसे उत्तम जीवन वाले भिक्षु पर भी कोई Avat--'साहुजीविणं-साधुजीविनम्' उत्तम न मायारथी - नि: ४२१:१॥ 'त-तम्' ते 'भिक्खू-भिक्षुकम्' साधुना विषयमा 'एगे-एके' 5 भात शनणा 'परिभासति-परिभाषन्ते' मा अपामा भावना२ मा२५ वय ४९ छ, 'जे एवं परिभासंति-ये एवं परिभाषन्ते' २॥ २ना मा५ पयन ४ छ 'ते-ते' ते ५३५ 'समाहिए-समाधेः' समसाथी 'अंतए-अन्तके' ६२ ॥ छ. ॥८ સૂત્રાર્થ–સાધુજીવન જીવનારા તે સાધુને માટે કઈ કોઈ માણસે આક્ષેપ વચનને પ્રયોગ કરે છે. એવાં લેકે સમાધિથી દૂર જ રહે છે. ૮ ટીકા_જેઓ સાધુજીવી છે એટલે કે સાધુના આચારોનું પાલન કરનારા છે, પરોપકાર આદિ રૂપ સમ્યક્ આચરણથી જેઓ યુક્ત છે, એવા For Private And Personal Use Only
SR No.020779
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages729
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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