________________
आगम विषय कोश-२
३७
अनुयोग
कौन नहीं चाहता? कल्प और व्यवहारसूत्र अपवाद बहुल हैं ४. रूपयुत-शरीर सम्पदा से सम्पन्न। इसलिए शिष्यों के स्थिरीकरण के लिए गुणसंपन्न आचार्य को ५.संहननयुत-सुदृढ़ संहनन संपन्न। . ही इन सूत्रों के अनुयोग का अधिकार है।
६. धृतियुत-अतिगहन अर्थों में अभ्रमित। यदि कल्प और व्यवहार का अनुयोग प्रवृत्त होता ७. अनाशंसी-अनाकांक्षी। है तो क्या कल्प एक अंग है? अथवा अनेक अंग हैं? एक ८. अविकत्थन-अबहभाषी/अल्पभाषी। श्रुतस्कंध है? अथवा अनेक श्रृतस्कंध हैं? एक अध्ययन ९. अमायी-मायापूर्ण व्यवहार से शिष्य का निर्वहन न करने है ? अथवा अनेक अध्ययन हैं? एक उद्देशक है? अथवा
वाले। अनेक उद्देशक हैं?
१०. स्थिरपरिपाटी-निरन्तर अभ्यास के कारण अविच्छिन्न उपर्युक्त आठ विकल्पों में तीन विकल्प निक्षेप्य/ अनुयोग की परम्परा वाले। आदरणीय हैं, शेष पांच विकल्प निक्षेप्य नहीं हैं। यथा- ११. गृहीतवाक्य-आदेय वचन वाले। कल्प एक अंग नहीं हैं और अनेक अग भी नहीं है। एक १२. जितपरिषद्-महान् परिषद् में भी अक्षुब्ध। श्रुतस्कंध है, अनेक श्रुतस्कंध नहीं हैं। एक अध्ययन है,
१३. निद्राजयी-नींद से अबाधित। अनेक अध्ययन नहीं हैं। एक उद्देशक नहीं है, अनेक उद्देशक
१४. मध्यस्थ-अपक्षपाती।
१५. देशज्ञ-देश को जानने वाले। (इसी प्रकार व्यवहार का स्वरूप ज्ञातव्य है। विशेष
१६. कालज्ञ-काल को जानने वाले। यह है कि कल्प के छह और व्यवहार के दस उद्देशक हैं।)
१७. भावज्ञ-अभिप्राय को जानने वाले। ६. अनुयोगकृत् (आचार्य) के छत्तीस गुण १८. आसन्नलब्धप्रतिभ-प्रतिवादियों के प्रश्नों का तत्काल देस-कुल-जाइ-रूवी, संघइणी धिइजुओ अणासंसी। उत्तर देने में समर्थ।
अविकंथणो अमाई, थिरपरिवाडी गहियवक्को॥ १९. नानाविधदेशभाषज्ञ-अनेक देशों की भाषा जानने वाले। जियपरिसो जियनिद्दो, मज्झत्थो देस-काल-भावनू। २०. आचारसंपन्न-ज्ञान आदि पांच आचारों में सुस्थित।
आसन्नलद्धपइभो, नानाविहदेसभासन्नू॥ २१. सूत्रविधिज्ञ-सूत्र की विधि को जानने वाले। पंचविहे आयारे, जुत्तो सुत्तऽत्थतदुभयविहन्नू। २२. अर्थविधिज्ञ-अर्थ की विधि को जानने वाले।
आहरण-हेउ-उवणय-नयनिउणो गाहणाकुसलो॥ २३. तदुभयविधिज्ञ-सूत्र तथा अर्थ की विधि को जानने वाले। ससमय-परसमयविऊ, गंभीरो दित्तिमं सिवो सोमो। २४. आहरण-निपुण-दृष्टांत-निपुण। गुणसयकलिओ जुत्तो, पवयणसारं परिकहेउं॥ २५. हेतु-निपुण-ज्ञापक, कारक आदि हेतुओं में निपुण। गुणसुट्ठियस्स वयणं, घयपरिसित्तु व्व पावओ भाइ। २६. उपनयनिपुण-उपसंहार करने में निपुण। गुणहीणस्स न सोहइ, नेहविहूणो जह पईवो॥ २७. नयनिपुण नैगम आदि नयों में निपुण ।
(बृभा २४१-२४५) २८. ग्राहणाकुशल-प्रतिपादन की शक्ति से संपन्न। अनुयोगकृत् (आचार्य) छत्तीस गुणों से संपन्न होते २९. स्वसमयवित्-स्वसिद्धांत को जानने वाले।
३०. परसमयवित्-पर सिद्धांत को जानने वाले। १. देशयुत-मध्यदेश या साढे पचीस आर्य देशों में उत्पन्न।
३१. गंभीर-गंभीर स्वभाव वाले। २. कुलयुत-नागकुल, इक्ष्वाकुकुल आदि उत्तम कुलों में ३२. दीप्तिमान्-परवादियों द्वारा अनुद्धर्षणीय-अपराजेय। उत्पन्न।
३३. शिव-शांत स्वभाव वाले। कल्याण करने वाले। ३. जातियुत- उत्तम मातृक पक्ष वाले।
३४. सोम-सौम्य दृष्टि वाले।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org